For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो पलकों की चिलमन …

वो पलकों की चिलमन …

वो पलकों की  चिलमन  उठा के गिराना
वो आँचल  के  कोने  को  मुंह में दबाना

ज़हन में  है  ज़िंदा  वो मंज़र मिलन का
भला   कैसे   भूलूं  मैं  उसका   मनाना

मुहब्बत की   रूदाद क्यूँ अश्कों में भीगी
क्यूँ होता है मुहब्बत का दुश्मन ज़माना


गुजरती है करवट में तमाम शब हमारी
सलवटों में सिसकता है दिल का फ़साना

रंज होता है क्या ये न जाने थे अब तक
हिज्र में हम तेरी अश्कों को भूले छुपाना

अपनी ख़ल्वत से रहूँ क्यों भला मैं ख़फ़ा
आ गया रास याद बनके उनका  सताना


सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 722

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 7, 2014 at 6:50pm

मैंने अपने पिछली टिप्पणी में खोल कर जो लिख दिया है, वही तो  आपके मतले के दोनों मिसरों का वज़्न है, आदरणीय.

यानि, १२२ १२२ १२२ १२२ 

वो (१) पलकों (२२) की (१) चिलमन (२२) उ (१)ठा के (२२) गि (१) राना (२२ )
वो (१) आँचल )२२) के (१) कोने (२२) को (१) मुंह में (२२) द (१) बाना (२२)

यहाँ अण्डरस्कोर शब्द की मात्राएँ आवश्यकतानुसार गिरायी गयी हैं.

इसी वज़्न पर सभी मिसरों को साधते चले जायें.

यह तो हुई पहली और सरल बात. 

मुख्य बात तो यह है, कि आप इस मंच पर ग़ज़ल की बातें या ग़ज़ल की कक्षा समूह को ज्वाइन कर लें और ग़ज़ल की मूलभूत नियमावलियों को यथासंभव कंठस्थ कर जायें. दखियेगा, आप कुछ ही दिनों में इस मंच पर ही नहीं अन्य मंचों पर भी अपनी समझ साझा करने लगेंगे...  :-))) 

सादर

Comment by Sushil Sarna on February 7, 2014 at 6:11pm

आदरणीय सौरभ जी , आपसे बस एक विनती है मेरी इस ग़ज़ल के किसी अशआर की मात्राएँ मुझे बता दें और जहां इसे दुरुस्त करने की जरूरत महसूस हो रही है वो अगर बता देंगे तो भविष्य में मैं अपनी ग़ज़ल विधा के प्रति सतर्क हो जाऊंगा। आपको असुविधा तो होगी उसके लिए क्षमा चाहता हूँ।  सदर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 7, 2014 at 2:02pm

अभी-अभी आपके व्यक्तिगत मेसेज पर मैंने उत्तर दिया है, आदरणीय सुशील भाईजी. उसका आशय यही है कि आप अपनी रचना से सम्बन्धित बातें रचना के पटल पर ही लिख दें. आपके उसी मेसेज को यहाँ देख रहा हूँ ! ..

सादर धन्यवाद, आदरणीय.

 

Comment by Sushil Sarna on February 7, 2014 at 1:24pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , नमस्कार - मेरे द्वारा प्रेषित ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।  सर सच कहूँ तो मुझे रदीफ़, काफिया और बह्र तो समझ आते हैं लेकिन मात्राओं का ज्ञान ग़ज़ल में समझ में नहीं आया हालांकि हिंदी में मात्राओं को मैं समझता हूँ।  इसके दीर्घ और लघु स्वरों की गिनती हिंदी से कुछ अलग लगती है।  अपने भावों को रदीफ़ और काफिये के नियम के साथ मेल करके ग़ज़ल लिखने की कोशिश की है।  मुझे ज्ञान तभी मिलेगा जब मैं जो जानता हूँ उसे उसी रूप में मंच पर प्रस्तुत करूं ताकि आप जैसे गुणी जनों की जब नज़र-ए-करम हो तो भावों को वो ज़मीन मिल सके जिसपर मैं भावों की महक के पुष्प खिला सकूं।  । पुनः आपके स्नेह का हार्दिक आभार। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 7, 2014 at 11:32am

आपने बह्र क्या लिया है ? उसकी मात्रा क्या है ? मुझे मतला और आगे के अश’आर के मिसरे अलग-अलग दिख रहे हैं.

क्या १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ की मात्रा है .. यदि हाँ तो इसे ग़ज़ल के साथ लिख दें. और भी मिसरों को सधिये. यदि नहीं, तो बताइये, आदरणीय.

Comment by Sushil Sarna on February 6, 2014 at 7:21pm

आदरणीय रमेश कुमार चौहान  जी ग़ज़ल पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on February 6, 2014 at 7:20pm


आदरणीया राजेश कुमारी जी ग़ज़ल पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 6, 2014 at 11:07am

बेहतरीन


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 5, 2014 at 9:11pm

बहुत सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति दाद कबूलें आ० सुशील जी 

Comment by Sushil Sarna on February 5, 2014 at 7:52pm

आदरणीया मीना पाठक जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service