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फ़क़त दो चार पल की बात है ये ( ग़ज़ल - गिरिराज भन्डारी )

1222     1222     122 

फ़क़त दो चार पल की बात है ये

हाँ, बस इक रात जैसी रात है ये

कबूतर, तुम यक़ीं करना समझ कर

कहूँ क्या? आदमी की जात है ये

 

रफ़ाक़त आप कैसे कह रहे हैं ?

असल में पीठ खाई घात है ये

 

ख़िरदमन्दी से थोड़ी सी अलग है

न समझोगे दिलों की बात है ये,

ख़िरदमन्दी - बुद्धिमानी

 

मेरी इस बेबसी को दो दुआयें

रफीकों से मिली सौगात है ये

 

जो लब खामोश,जोड़े हाथ हैं तो

समझ लो बिन लड़े ही मात है ये

*************************

 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on March 22, 2014 at 10:09am

आदरणीया सरिता जी , आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 22, 2014 at 8:22am

ख़िरदमन्दी से थोड़ी सी अलग है

ये दिल की बात है, ज़ज्बात है ये.............वाह! बहुत खुबसूरत

हार्दिक बधाई आपको आदरणीय गिरिराज जी

Comment by Sarita Bhatia on March 21, 2014 at 8:48pm

आदरणीय गिरिराज जी हार्दिक बधाई खुबसूरत गजल के लिए 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 20, 2014 at 10:15pm

आदरणीय नादिर खान भाई , ग़ज़ल की तारीफ़ कर उत्साह वर्धन करने के लिये तहे दिल से शुक्रिया ॥


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Comment by गिरिराज भंडारी on March 20, 2014 at 10:13pm

आदरणीय राम भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by नादिर ख़ान on March 20, 2014 at 10:12pm

ख़िरदमन्दी से थोड़ी सी अलग है

ये दिल की बात है, ज़ज्बात है ये...बहुत उम्दा बात कही अदरणीय गिरिराज जी 

Comment by ram shiromani pathak on March 20, 2014 at 9:55pm

वाह वाह बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय।।।।।।।।।।हार्दिक बधाई आपको 


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Comment by गिरिराज भंडारी on March 20, 2014 at 8:18am

आ. लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 20, 2014 at 7:08am

आदरणीय भाई गिरिराज जी , बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .

ख़िरदमन्दी से थोड़ी सी अलग है

ये दिल की बात है, ज़ज्बात है ये

तथा

मेरी इस बेबसी को दो दुआयें
रफीकों से मिली सौगात है ये                                                                                                                                                           के लिए विशेष रूप से बधाई स्वीकार करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 18, 2014 at 10:41pm

आदरणीय गजेन्द्र भाई , ग़ज़ल की तारीफ के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥ ऐसे ही स्नेह बनाये रखें ॥

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