कह मुकरियाँ “ – पाँच
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मुझे छोड़ वो कहीं न जाये
इधर उधर की सैर कराये
साथ रहे जैसे हो धड़कन
क्या सखि साजन , नहीं सखि मन
मुझको सच्ची राह दिखाये
सही गलत वो मुझे सुझाये
मै, जाँ कह दूँगी, नहीं शरम
क्या सखि साजन . नहीं सखि धरम
जीते जी वो साथ न छोड़े
मर जाऊँ तो पीछे दौड़े
कर देता मेरी आँखें नम
क्या सखि साजन , नहीं रे करम
मुझको हरदम राह भुलाये
पूछो तो कुछ नहीं बताये
जैसे कोई उठाई क़सम
क्या सखि साजन , नहीं सखि भरम
पास रहे तो बहुत सताये
बिना आग भी खूब जलाये
सब उल्टा कर दे रहन सहन
क्या सखि साजन , नहीं सखि जलन
मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )
Comment
आदरनीय सौरभ भाई , आपके शब्दों से बहुत राहत मिली , आपका हार्दिक आभार ॥
इंगितों की सार्थकता से आपके बन्द विशिष्ट बन गये हैं. बधाई.. .
आदरणीया प्राची जी , कह्मुकरियों के प्रथम प्रयास को आपकी सराहना मिली , बहुत खुशी हुई , आगे और बेहतर कहने का प्रयास
करूंगा ॥ प्रवाह को सुधारने के विषय मे कुछ सोच रहा हूँ , सूझते ही सुधार कर लूंगा ॥
आदरणीय जितेन्द्र भाई , कह मुकरियों की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीया राजेश कुमारी जी , सराहना और उचित सलाह के लिये आपका आभारी हूँ , गेयता मे सुधार की कोशिश करूँगा ॥
बहुत ही सुंदर कह-मुकरियाँ कही आपने आदरणीय गिरिराज जी, आपको हार्दिक बधाई
प्रथम प्रयास है ,पर सार्थक प्रयास है हार्दिक बधाई आपको .आ० अखिलेश जी ने जैसा कहा एक आध जगह प्रवाह बाधित है.पर आप उसे दुरुस्त कर लेंगे ये विश्वास है
आदरनीय नीरज नीर भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय बड़े भाई अखिलेश जी , कह मुकरियों की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥
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