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फ़क़त दो चार पल की बात है ये ( ग़ज़ल - गिरिराज भन्डारी )

1222     1222     122 

फ़क़त दो चार पल की बात है ये

हाँ, बस इक रात जैसी रात है ये

कबूतर, तुम यक़ीं करना समझ कर

कहूँ क्या? आदमी की जात है ये

 

रफ़ाक़त आप कैसे कह रहे हैं ?

असल में पीठ खाई घात है ये

 

ख़िरदमन्दी से थोड़ी सी अलग है

न समझोगे दिलों की बात है ये,

ख़िरदमन्दी - बुद्धिमानी

 

मेरी इस बेबसी को दो दुआयें

रफीकों से मिली सौगात है ये

 

जो लब खामोश,जोड़े हाथ हैं तो

समझ लो बिन लड़े ही मात है ये

*************************

 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 18, 2014 at 1:16am

कबूतर, तुम यक़ीं करना समझ कर

कहूँ क्या? आदमी की जात है ये

उम्दा शेर ...बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 27, 2014 at 8:54pm

आदरनीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका आभार ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 27, 2014 at 7:11pm

आदरणीय कबूतर वाला शेर बहुत अच्छा हुआ है.

बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 26, 2014 at 9:46pm

आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 26, 2014 at 8:37pm

कबूतर, तुम यक़ीं करना समझ कर

कहूँ क्या? आदमी की जात है ये......................वाह! क्या कहने 

ये शेर बहुत पसंद आया आ० गिरिराज भंडारी जी..बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 24, 2014 at 5:57pm

आदरणीय वीनस भाई , आपका तहे दिल से शुक्रिया , दोनो ग़लतियाँ अभी सुधार लेता हूँ ॥

Comment by वीनस केसरी on March 24, 2014 at 1:19am

कबूतर, तुम यक़ीं करना समझ कर

कहूँ क्या? आदमी की जात है ये

बहुत खूब ज़नाब क्या कहने

 


ज़ज्बात जज़्बा का बहुवचन होता है इसलिए ज़ज्बात है ये कहना गलत है जज़्बात हैं ये होना चाहिए
बंधे को २२ मात्रा में बाँधा संभव नहीं है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 22, 2014 at 5:54pm

आदरणीय बड़े भाई अखिलेश जी , गज़ल की तारीफ पर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 22, 2014 at 1:08pm

छोटे भाई गिरिराज

अच्छी गज़ल , हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 22, 2014 at 10:10am

आदरणीय जितेन्द्र भाई , सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

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