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फ़क़त दो चार पल की बात है ये
हाँ, बस इक रात जैसी रात है ये
कबूतर, तुम यक़ीं करना समझ कर
कहूँ क्या? आदमी की जात है ये
रफ़ाक़त आप कैसे कह रहे हैं ?
असल में पीठ खाई घात है ये
ख़िरदमन्दी से थोड़ी सी अलग है
न समझोगे दिलों की बात है ये,
ख़िरदमन्दी - बुद्धिमानी
मेरी इस बेबसी को दो दुआयें
रफीकों से मिली सौगात है ये
जो लब खामोश,जोड़े हाथ हैं तो
समझ लो बिन लड़े ही मात है ये
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
कबूतर, तुम यक़ीं करना समझ कर
कहूँ क्या? आदमी की जात है ये
उम्दा शेर ...बधाई आपको
आदरनीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका आभार ॥
आदरणीय कबूतर वाला शेर बहुत अच्छा हुआ है.
बधाई
आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिये आपका आभारी हूँ ॥
कबूतर, तुम यक़ीं करना समझ कर
कहूँ क्या? आदमी की जात है ये......................वाह! क्या कहने
ये शेर बहुत पसंद आया आ० गिरिराज भंडारी जी..बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर
आदरणीय वीनस भाई , आपका तहे दिल से शुक्रिया , दोनो ग़लतियाँ अभी सुधार लेता हूँ ॥
कबूतर, तुम यक़ीं करना समझ कर
कहूँ क्या? आदमी की जात है ये
बहुत खूब ज़नाब क्या कहने
ज़ज्बात जज़्बा का बहुवचन होता है इसलिए ज़ज्बात है ये कहना गलत है जज़्बात हैं ये होना चाहिए
बंधे को २२ मात्रा में बाँधा संभव नहीं है
आदरणीय बड़े भाई अखिलेश जी , गज़ल की तारीफ पर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
छोटे भाई गिरिराज
अच्छी गज़ल , हार्दिक बधाई
आदरणीय जितेन्द्र भाई , सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
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