For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जो मेरे कभी थे वो दूर हैं ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

11212         11212       11212       11212 

 

हुये  रोशनी के प्रतीक जो , वो अँधेरों से  हैं  घिरे  हुये

ये कहो नही, जो कहे अगर, तो ये जान लें कि गिले हुये

 

न ही दर्द  की कोई जात है, न ही  शादमानी की कौम है

ये सियासतों की है साजिशें , जो  हैं  बांटने को पिले हुये

 

कोई क्या करे, कि निजाम में, है घुटन बहुत जो भरी हुई

कभी सोच कैद किये मेरे , कभी  होठ भी थे  सिले  हुये

 

मेरा  गम नही, कोई हंस है ,किया नीर क्षीर अलग अलग

जो मेरे  कभी थे वो दूर हैं , लगे  ग़ैर  थे वो  मिरे हुये

 

है हवा  भरी हुई   ह्र से , है  फ़िज़ा  फ़िज़ा  हुई  शाजिशें 

मुझे उन गुलों की भी फ़िक्र है, लगे आज हैं जो खिले हुये

 

**************************************************************

 मौलिक एवँ अप्रकाशित 

Views: 705

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 7, 2014 at 9:12pm

बहुत शानदार ग़ज़ल कही है 

जीवन की बहुत गहरे छूती सच्चाइयों को पूरी संवेदना के साथ प्रस्तुत किया है 

इस कठिन बह्र को साध कर प्रस्तुति देने के लिए विशेष बधाई 

सभी अशआर पसंद आये

शुभकामनाएं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 3, 2014 at 5:34pm

आदरणीय सौरभ भाई , आपने मुक्त कण्ठ की सराहना की ,  रचना कर्म सार्थक हुआ , सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 3, 2014 at 2:37am

आपकी इस ग़ज़ल की मैं किन शब्दों में प्रशंसा करूँ, भाईजी ! जिस ऊँचाई पर यह ग़ज़ल पहुँच रही है, वहाअपके अबतक गहन के प्रयासों का ही नतीजा है. इन अश’आर पर आपको विशेष बधाई दे रहा हूँ.

कोई क्या करे, कि निजाम में, है घुटन बहुत जो भरी हुई
कभी सोच कैद किये मेरे , कभी  होठ भी थे  सिले  हुये

मेरा  गम नही, कोई हंस है ,किया नीर क्षीर अलग अलग
जो मेरे  कभी थे वो दूर हैं , लगे  ग़ैर  थे वो  मिरे हुये

है हवा  भरी हुई  ज़ ह्र से , है  फ़िज़ा  फ़िज़ा  हुई  शाजिशें
मुझे उन गुलों की भी फ़िक्र है, लगे आज हैं जो खिले हुये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 26, 2014 at 5:22pm

आ. सचिन भाई , ग़ज़ल की तारीफ के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥ 

Comment by Sachin Dev on March 26, 2014 at 2:52pm

आदरणीय गिरिराज जी, बेहद खूबसूरत गजल पेश की आपने हार्दिक बधाई आपको ! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 25, 2014 at 6:39pm

आदरणीय आशुतोष भाई , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के ल्लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 25, 2014 at 6:38pm

आदरणीय अभिनव अरुण भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति आनन्द दायक है , आपका बहुत आभार ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 25, 2014 at 5:42pm

ही दर्द की कोई जात है, न ही शादमानी की कौम है
ये सियासतों की है साजिशें , जो हैं बांटने को पिले हुये
है हवा भरी हुई ज़ ह्र से , है फ़िज़ा फ़िज़ा हुई शाजिशें
मुझे उन गुलों की भी फ़िक्र है, लगे आज हैं जो खिले हुये..आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..काफ्फी अरसे तक आपकी बेहतरीन रचनाओं से बंचित था आज फिर आपकी शानदार ग़ज़ल पढने को मिली ..ये दो शेर तो मुझे बेहद पसंद आये ..सादर ..देर से ही सही होली की शुभकामनाओं के साथ

Comment by Abhinav Arun on March 25, 2014 at 2:28pm

हर एक शेर उम्दा आदरणीय हार्दिक बधाई इस मुकम्म्ल ग़ज़ल के लिए !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 25, 2014 at 7:10am

आदरणीय गणेश भाई , आपकी उपस्थिति मात्र ही मेरे लिये खुशी और उत्साह का कारन है , उपर से आपकी सराहना भी मिली , दोहरी खुशी देने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service