अल्प विराम – पूर्ण विराम
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वो मै होऊँ या आप
छोटा मोटा विद्यार्थी
सबके अंदर जीता है ,
आवश्यक रूप से
और वो जानता भी है ,
जीते रहने की अहमियत
जीना भी चाहता है
पूर्णता तक,
या मौत तक ।
सीखने के क्रम में पूर्ण विराम नहीं होता
सब अल्प विराम ही होते हैं
क्योंकि ,
पूर्ण ज्ञान तो होता है
केवल ईश्वर में
या उस पूर्ण ज्ञानी को जान लेने में ।
वही भेजता है , देता है , लगाता है
पूर्ण हो जाने पर ,
पूर्ण विराम ।
एक बार , बस एक बार ,
बाक़ी सब अल्प विराम होते हैं ।
चंद अल्प विरामों को जोड़ कर
ज़िन्दा विद्यार्थी की गर्दन मरोड़ कर
बलात लगाये गये पूर्ण विराम
भ्रम तो देते हैं , वो भी
खुद को अधिक , दूसरों को कम
पूर्ण विराम का ,
मगर होते नही ॥
मर रहे विद्यार्थी को जीने दें भाई ॥
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अरुण भाई , आपकी सराहना और भाव के अनुमोदन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय सौरभ भाई , रचना आप तक पहुँची इसी से आत्मिक संतोष हुआ , अनुमोदन के लिये आपका आभारी हूँ ॥
बहुत गहरी और संदेशपरक कविता हुई है ! ज्ञानी होने के अहंकार में मृत्यु ही तो होती है किसी प्रशिक्षु की ! सुन्दर !
प्रस्तुत कविता की अंतर्दशा स्पष्ट है. आपकी भावनाओं को यों शब्दबद्ध होते देखना भला लगा.
सादर
आदरणीय आशुतोष भाई , रचना की सराहना और अनुमोदन के लिये आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..एक नूतन चिंतन को समाहित किये हुए दार्शनिक रचना ..साथ में जीवन का अद्भुत सन्देश ..वाकई
र्ण ज्ञान तो होता है
केवल ईश्वर में
या उस पूर्ण ज्ञानी को जान लेने में ।
वही भेजता है , देता है , लगाता है
पूर्ण हो जाने पर ,
पूर्ण विराम ।
एक बार , बस एक बार ,
बाक़ी सब अल्प विराम होते हैं इन पंक्तियों के लिए बिशेष रूप से बधाई स्वीकार करें ..सादर
आदरणीय लक्ष्मण भाई , रचना को आपकी सहमति मिली , बहुत खुशी हुई , आपका हार्दिक आभार ॥
सार्थक प्रस्तुति के लिए बधाई श्री गिरिराज भंडारी जी
आदरणीय अरुण अनंत भाई , अरचना को आपका अनुमोदन मिला तो लिख्ना सार्थक हुआ , सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीय गिरिराज सर अल्प विराम एवं पूर्ण विराम को बहुत ही सुन्दरता से लिखा है आपने सत्य कहा आपने सीखने के क्रम में पूर्ण विराम नहीं होता पूर्ण ज्ञान तो केवल ईश्वर में होता है. इसी तथ्य को जो मनुष्य समझ जाए उसका जीवन सफल हो जाए, बहुत ही गहन भाव सार्थक संदेशात्मक रचना के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
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