For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कहीं चाँद छुप के निकल रहा ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

11212       11212       11212         11212

ये न पूछ शाम ढली किधर , तू ये देख चाँद निकल रहा

समाँ सुर्मयी था जो रात का , वो भी चंपई मे बदल रहा

***

ये तो हौसले की ही बात है ,बड़ी तेज धूप है चार सूँ

किसी सायबाँ का पता नही ,बिना आसरा कोई चल रहा

***

मै क़दम मिला के न चल सका, ऐ जहाने नौ तेरी चाल से

मेरी कोशिशें हुई रायगाँ, मै क़दम क़दम पे फिसल रहा

***
रायगाँ = व्यर्थ

तेरा मुस्कुराना ग़ज़ब किया, तुझे क्या कहूँ मेरी हमनफ़स

वो जो मर चुका मेरा ख़्वाब था ,मेरी आखों में वो मचल रहा  

***

हमनफ़स = साथी , मित्र 

ये विचित्रता भी तो देखिये , कि झुकी है डाली फलों लदी

कहीं घट भरा हुआ मौन है , जो अधूरा है वो उछल रहा

***

यहाँ जाविदाँ भला कौन है, कभी थे यहाँ, वो  नही  रहे  

न वो बादशाह न फ़र्द है, न वो आज है न वो कल रहा

***
जाविदाँ = अमर ,

ये जो बदलियाँ बिना ख़ौफ़ के, लगीं घूमने सरे आसमाँ

यहाँ चाँदनी है डरी हुई , कहीं चाँद छुप के निकल रहा

****

न ही दर्या है न ये बह्र है , न ये कोई झील है गर्म सी

ये तो दर्द का वो पहाड़ है , जो है आंच पाके पिघल रहा

 

****************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

Views: 660

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 26, 2014 at 6:24pm

आदरणीर सौरभ भाई , आपकी उत्साह वर्धक सराहना से बहुत खुशी हुई , ऐसे ही स्नेह बनाये रखें , सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 26, 2014 at 6:05pm

क्या बात है !! .. आदरणीय, आप जहाँ से ये ग़ज़ल कह रहे हैं इसके आगे सिर्फ़ और सिर्फ़ ग़ाल होती है. दाद दाद दाद .. भरपूर दाद है.

ये जो बदलियाँ बिना ख़ौफ़ के, लगीं घूमने सरे आसमाँ
यहाँ चाँदनी है डरी हुई , कहीं चाँद छुप के निकल रहा

क्या कमाल का शेर हुआ है !
यही क्यों करीब-करीब सभी हैं..
शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 24, 2014 at 5:53pm

आदरणीय वीनस भाई , आपकी सराहना से ग़ज़ल धन्य हुई , आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥ आदरणीय , मेरी हर सफलता श्रेय बह के आप तक जी जायेगा ॥ आपका दिल से शुक्रिया ॥

Comment by वीनस केसरी on March 24, 2014 at 1:53am

वाह आप तो बह्र मास्टर हो गए

जिंदाबाद ग़ज़ल है ... उस्तादों को भी पसीना आ जाए ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 10, 2014 at 9:24pm

आदरणीय शिज्जू भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥ आदरणीय ' चार सू ' सही शब्द बतलाने के लिये आपका अलग से शुक्रिया , मै ज़रूर सुधार कर लूंगा ॥ पुनः आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 10, 2014 at 9:22am

आदरणीय गिरिराज सर ग़ज़ल बहुत अच्छी हुई है खूबसूरती से आपने बह्र को निभाया भी है, बस "चार सूँ" है उसे "चार सू" कर लीजिये
सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 9, 2014 at 12:39pm

आदरणीय मुकेश भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका दिल से आभारी हूँ ।

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on March 9, 2014 at 11:51am

WAAH WAAH WAAH MITRA KHOOB


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2014 at 7:02pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से  शुक्रिया ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 6, 2014 at 11:43pm

बहुत लाजबाब गजल हुयी आदरणीय गिरिराज जी

ये विचित्रता भी तो देखिये , कि झुकी है डाली फलों लदी

कहीं घट भरा हुआ मौन है , जो अधूरा है वो उछल रहा..........वाह! क्या बात है, ढेरों बधाइयाँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी //नदियों का भिन्न रंग, बहने का भिन्न ढंग, एक शांत एक तेज, दोनों में खो…"
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मैं प्रथम तू बाद में,वाद और विवाद में,क्या धरा कुछ  सोचिए,मीन मेख भाव में धार जल की शांत है,या…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्रोक्त भाव सहित मनहरण घनाक्षरी छंद प्रिय की मनुहार थी, धरा ने श्रृंगार किया, उतरा मधुमास जो,…"
10 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++ कुंभ उनको जाना है, पुन्य जिनको पाना है, लाखों पहुँचे प्रयाग,…"
12 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक , पोस्ट कुछ देर बाद  स्वतः  डिलीट क्यों हो रहा है |"
13 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
yesterday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service