For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'अल्प विराम-पूर्ण विराम' अतुकांत ( गिरिराज भंडारी )

अल्प विराम – पूर्ण विराम  

********************

वो मै होऊँ या आप

छोटा मोटा विद्यार्थी

सबके अंदर जीता है ,

आवश्यक रूप से

और वो जानता भी है ,

जीते रहने की अहमियत

जीना भी चाहता है

पूर्णता तक,

या मौत तक ।

सीखने के क्रम में पूर्ण विराम नहीं होता

सब अल्प विराम ही होते हैं

क्योंकि ,

पूर्ण ज्ञान तो होता है

केवल ईश्वर में

या उस पूर्ण ज्ञानी को जान लेने में ।

वही भेजता है , देता है , लगाता है

पूर्ण हो जाने पर ,

पूर्ण विराम ।

एक बार , बस एक बार ,

बाक़ी सब अल्प विराम होते हैं ।

 

चंद अल्प विरामों को जोड़ कर

ज़िन्दा विद्यार्थी की गर्दन मरोड़ कर

बलात लगाये गये पूर्ण विराम

भ्रम तो देते हैं , वो भी

खुद को अधिक , दूसरों को कम

पूर्ण विराम का ,

मगर होते नही ॥

मर रहे विद्यार्थी को जीने दें भाई ॥

*******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित   

Views: 663

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 3, 2014 at 5:29pm

आदरणीय अरुण भाई , आपकी सराहना और भाव के अनुमोदन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 3, 2014 at 5:28pm

आदरणीय सौरभ भाई , रचना आप तक पहुँची इसी से आत्मिक संतोष हुआ , अनुमोदन के लिये आपका आभारी हूँ ॥

Comment by Arun Sri on April 3, 2014 at 11:43am

बहुत गहरी और संदेशपरक कविता हुई है ! ज्ञानी होने के अहंकार में मृत्यु ही तो होती है किसी प्रशिक्षु की ! सुन्दर !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 3, 2014 at 11:30am

प्रस्तुत कविता की अंतर्दशा स्पष्ट है. आपकी भावनाओं को यों शब्दबद्ध होते देखना भला लगा.
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 28, 2014 at 5:55pm

आदरणीय आशुतोष भाई , रचना की सराहना और अनुमोदन के लिये आपका आभारी हूँ ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 28, 2014 at 5:35pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..एक नूतन चिंतन को समाहित किये हुए दार्शनिक रचना ..साथ में जीवन का अद्भुत सन्देश ..वाकई 

र्ण ज्ञान तो होता है

केवल ईश्वर में

या उस पूर्ण ज्ञानी को जान लेने में ।

वही भेजता है , देता है , लगाता है

पूर्ण हो जाने पर ,

पूर्ण विराम ।

एक बार , बस एक बार ,

बाक़ी सब अल्प विराम होते हैं  इन पंक्तियों के लिए बिशेष रूप से बधाई स्वीकार करें ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 28, 2014 at 5:15pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , रचना को आपकी सहमति मिली , बहुत खुशी हुई , आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 28, 2014 at 4:13pm

सार्थक प्रस्तुति के लिए बधाई श्री गिरिराज भंडारी जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 27, 2014 at 3:49pm

आदरणीय अरुण अनंत भाई , अरचना को आपका अनुमोदन मिला तो लिख्ना सार्थक हुआ , सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥

Comment by अरुन 'अनन्त' on March 27, 2014 at 2:06pm

आदरणीय गिरिराज सर अल्प विराम एवं पूर्ण विराम को बहुत ही सुन्दरता से लिखा है आपने सत्य कहा आपने सीखने के क्रम में पूर्ण विराम नहीं होता पूर्ण ज्ञान तो केवल ईश्वर में होता है. इसी तथ्य को जो मनुष्य समझ जाए उसका जीवन सफल हो जाए, बहुत ही गहन भाव सार्थक संदेशात्मक रचना के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई।"
24 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आपने आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह भी ख़ूब हुई है ग़ज़ल और निखर जायेगी"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी अच्छी इस्लाह हुई है"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय इतनी बारीकी से इस्लाह की है आदरणीय तिलक राज सर ने मतले व अन्य शेरों पर काबिल…"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह हर ग़ज़ल पर बेहतरीन हुई है काबिल ए गौर है ग़ज़ल…"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई आदरणीय निलेश सर 4rth शेर बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें आदरणीय"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय धामी सर बधाई स्वीकारें सुधार के बाद शेर और निखर गए हैं"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सुधार- उम्रें न सही लम्हे बिताने के लिए आ ग़र इश्क़ है तो साथ निभाने के लिए आ/१ दिल भूल गया है सभी…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"मुश्किल में हूँ मैं मुझको बचाने के लिए आ है दोस्ती तो उसको निभाने के लिए आ 1 यही बात इन्हीं शब्दों…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अभी समय मॉंगती है। बहुत से शेर अच्छे शेर होते-होते रह गये हैं। मेरा दृष्टिकोण प्रस्तुत…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय नीलेश जी नमस्कार  अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी बधाई स्वीकार कीजिए  गिरह शानदार…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार  अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिए  मतला और गिरह ख़ूब…"
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service