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जेठ की तपती दुपहरी!

जेठ की तपती दुपहरी!

जेठ की तपती दुपहरी, लगे नीरव शांत।
धूप झुलसा रही काया, स्वेद से मन क्लांत।।
शाख पर पक्षी विकल है, गेह में मनु जात।
सूर्य अम्बर आग उगले, जीव व्याकुल गात।१।

जल भरी ठंडी सुराही, पान कर मन तुष्ट।
दूध माखन और मठठा, तन करे है पुष्ट।।
पना अमरस संग चटनी, भा रहे पकवान।
कर्ण को मधुरिम लगे फिर, आज कोयल गान।२।

गूँजता अमराइयों में, बिरह पपिहा राग।
गाँठकर छाया दुपहरी, पढ़ रही निज भाग।।
कृष हुई सरिता निराली, सूख मंथर चाल।
फूल गुलमोहर खिले हैं, आज देखो लाल।३।

शयन गृह वातानुकूलित, पेय शीतल मांग।
मन ललचता देख कुल्फी, ठण्डई औ भांग।।
ग्रीष्म ऋतु की छुट्टियों में, सुरमई हो शाम।
घूमकर शिमला मनाली, कर रहे विश्राम।४।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 23, 2014 at 11:40am

इस सुन्दर गीत रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय भाई सत्यनारायण जी .

Comment by Satyanarayan Singh on May 23, 2014 at 11:33am

सादर आभार आ. लडिवाला जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 23, 2014 at 10:44am

ग्रीष्म ऋतु की छुट्टियों में, सुरमई हो शाम।
घूमकर शिमला मनाली, कर रहे विश्राम।४।-----यथार्थ भाव | सुन्दर गीत रचना के लिए बधाई 

चांदनी की चासनी में, शाम गजल के नाम 

पान शीतल पेय का, कवियों का यह धाम  |

Comment by Satyanarayan Singh on May 23, 2014 at 9:58am

सादर आभार आदरणीय नीरज जी

Comment by Satyanarayan Singh on May 23, 2014 at 9:57am

सादर आभार आदरणीया विन्दु जी 

  

Comment by Neeraj Neer on May 23, 2014 at 8:20am

वाह बहुत सुन्दर जेठ की  गरमी और उससे उपजे परिवेश का बड़ा ही मनोहारी चित्रण किया है आदरणीय .. 

Comment by Vindu Babu on May 22, 2014 at 11:19pm

इस छंदबद्ध गहन रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीय सत्यनारायन जी।

सादर

Comment by Satyanarayan Singh on May 22, 2014 at 10:02pm

सादर आभार आदरणीय विजय निकोरे जी

Comment by Satyanarayan Singh on May 22, 2014 at 10:01pm

सादर आभार आदरणीया अन्नपूर्णा  जी 

Comment by Satyanarayan Singh on May 22, 2014 at 10:01pm

सादर आभार आदरणीय सुशिल सरना जी 

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