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बेईमान सारे एक हैं- डा० विजय शंकर

बेईमानी की इतनी विधाएँ हैं
झूठ के रूप अनेक हैं
फिर भी बेईमान सारे एक हैं |
ऐसा भाई-चारा , ऐसा प्रेम ,
शायद ही कहीं किसी कर्म-क्षेत्र
के रखवालों में मिले , दुर्लभ है ।
दूसरी और सच एक है ,
ईमानदारी एक है ,
न सच के दो रूप हो सकते हैं ,
न ईमानदारी के |
फिर भी दो सच्चे ईमानदार
कभी एक नहीं हो सकते हैं
उनका एक होना दुर्लभ है ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

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Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on June 30, 2014 at 10:33pm
आदरणीय शिज्जू शकूर जी ,
पंक्तिया आपको अच्छी लगी , शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद .
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 30, 2014 at 10:30pm
आदरणीय इंजी ० गणेश जी बागी जी ,
प्रयास आपको अच्छा लगा , शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद .
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 30, 2014 at 10:26pm
धन्यवाद आदरणीय बृजेश नीरज जी ,

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 30, 2014 at 9:21pm

आदरणीय डॉ विजय सर कविता का मज़्मून अच्छा है बधाई आपको


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 30, 2014 at 9:11pm

आदरणीय डॉ साहब, भाव अच्छे हैं, यह रचना काव्य रूप में आने के लिए और समय चाहती है, इस प्रयास पर बधाई .

Comment by बृजेश नीरज on June 30, 2014 at 9:03pm
अच्छी रचना। आपको बधाई।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 30, 2014 at 8:46pm
आदरणीय गोपाल नरायन जी ,
यह समस्या तो अभी तक मेरी समझ में भी नहीं आयी . आपकीशुभ कामनाओं के लिए धन्यवाद , सादर .
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 30, 2014 at 12:57pm

प्रिय भाई ईमानदारो में एकता हो जाये तो बेईमान को सर छिपाने के जगह न मिले i पर हर ईमानदार यह समझता है  कि वह अगले से ज्यादा  अधिक ईमानदार है i

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