For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आत्मपीडा में अनुभूति सुख की लिए

दग्ध होता रहा अनुभवो  में सदा

सत्य ही उस करुण के ह्रदय कोश में

पल रहा कोई जीवंत अनुराग है i

 

मृत्यु आती नहीं चैन मिलता नहीं

युद्ध होता है विष चेतना में प्रबल

दंश लेता है जब फिर न देता लहर

क्रुद्ध फुंकारता नेह का नाग है i

 

मौन बेसुध पड़ा प्राण के अंक में

याद की वेदना में सजल जो हुआ

स्वेद-श्लथ गात में कुछ चुभन सी लिए

स्नेह सोया हुआ था गया जाग है  i

 

सिसकियो की व्यथा आंसुओ ने सुनी

वाग्देवी ने उसको मुखर कर दिया

मन चकित दर्प कवि-बोध का भ्रम लिए

सोचता इसमें क्या उसका प्रतिभाग है

 

शब्द-व्यायाम से गीत बनते नहीं

वेदना के बिना व्यर्थ  अनुराग है

गीत  तो आंसुओ में ढले है सदा

यदि ह्रदय  में प्रबल आग ही आग है i

 

(अप्रकाशित व मौलिक)

Views: 874

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on July 20, 2014 at 1:11pm

शब्द-व्यायाम से गीत बनते नहीं

वेदना के बिना व्यर्थ  अनुराग है

गीत  तो आंसुओ में ढले है सदा

यदि ह्रदय  में प्रबल आग ही आग है i...........आ. डा.गोपाल  नारायण श्रीवास्तव जी ,बहुत अच्छी तरह मर्म को स्पर्श करती रचना के लिए बधाई।   

Comment by Santlal Karun on July 20, 2014 at 8:18am

आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,

आप ने व्यथा के अनुवाद की जीवनगत महायात्रा को एक लघु कायिक रचना में अत्यंत मार्मिक संवेदना-सिक्त शब्दों से भीगे वेदना गीत में परिणत कर दिया है ; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! --

"मृत्यु आती नहीं चैन मिलता नहीं

युद्ध होता है विष चेतना में प्रबल

दंश लेता है जब फिर न देता लहर

क्रुद्ध फुंकारता नेह का नाग है i

 

मौन बेसुध पड़ा प्राण के अंक में

याद की वेदना में सजल जो हुआ

स्वेद-श्लथ गात में कुछ चुभन सी लिए

स्नेह सोया हुआ था गया जाग है  i"

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 18, 2014 at 2:16pm

आदरणीय सरना जी

मै तो स्वयं आपकी कलम का मुरीद हूँ  i  आपसे प्रोत्साहन मिलने का अलग ही आनंद है i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 18, 2014 at 2:15pm

महनीया मंजरी जी

आपको शत शत आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 18, 2014 at 2:13pm

जीतू भाई i

आपका प्यार i ह्रदय से स्वीकार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 18, 2014 at 2:12pm

महनीया

बहुत  बहुत आभार  i आपके शब्द प्रेरणा के उत्स है मेरे लिए i  सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 18, 2014 at 2:10pm

आदरणीय निकोर जी

आपकी पुनः उपस्थित से मन भावुक हो गया i आपसे ऐसे ही स्नेह्की सतत अभिलाषा है i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 18, 2014 at 2:01pm

आदरणीय जैफ जी

आपका हृदय से आभार i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 18, 2014 at 12:25am

आपकी रचना को बार-बार पढ़ा आदरणीय डा.गोपाल जी, बहुत ही सुंदर लगी..हर पंक्ति मन को झंझोड़ देती.  हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 17, 2014 at 10:21pm

आत्मपीडा में अनुभूति सुख की लिए

दग्ध होता रहा अनुभवो  में सदा

सत्य ही उस करुण के ह्रदय कोश में

पल रहा कोई जीवंत अनुराग है i-------बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ तप कर भी वही सोना बनता है जिसमे मिलावट नहीं अर्थात सच्चाई है बेशक पीड़ा सहना मगर दिल में सच्चाई बरकरार रखना ये भाव ऊँचाइयों को छूते हैं 

शब्द-व्यायाम से गीत बनते नहीं

वेदना के बिना व्यर्थ  अनुराग है

गीत  तो आंसुओ में ढले है सदा

यदि ह्रदय  में प्रबल आग ही आग है i

 सच कहा ह्रदय की आग की लपटें हीं वेदना को जन्मती हैं और वेदना शब्दों को तब कोई गीत बनता है 

बहुत सुन्दर प्रस्तुति सराहनीय ...हार्दिक बधाई आपको आ० डॉ गोपाल नारायण जी .

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service