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भारत की कुण्डली में तीन अमंगल ग्रह ( आल्हा छंद ) अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

आल्हा छंद 

बरसों पहले बंधु बनाकर, चाउ -माउ चीनी मुस्काय।                                       

और उसे हम बड़े प्यार से,  भैया कहकर गले लगाय।।                            

 

हर आतंकी पाकिस्तानी, चाल चीन की समझ न आय ।                                                             

दो मुँह वाला अमरीका है, विकिलीक्स दुनिया को बताय।।                       

 

एक ओर है  पाक समस्या , और कहीं चीनी घुस जाय ।                           

*राम - राम कहता अमरीका, छुरी बगल में लिया दबाय॥                            

 

इन तीनों का  नहीं भरोसा, कब गिरगिट सा रंग दिखाय ।                                       

किस- किस का हम रोना रोयें,  जो चाहे हम को चमकाय।।                        

 

अमरीका अब बेनकाब है,  फिर भी अपनी अकड़ दिखाय।                                   

हम से अपना  मतलब साधे, और हमें  ठेंगा दिखलाय।।                          

 

एक भाग कश्मीर हड़पकर,  पाक  भेड़िया फिर  गुर्राय ।                                

चीन ले लिया मानसरोवर,  अब तक जिसे छुड़ा ना पाय।।                               

 

एक  हो गये  सभी लुटेरे,  राहु – केतु बन  हमें सताय ।                         

हम कमजोर हैं जान गया है, ड्रेगन फिर से आँख दिखाय।।                    

 

सांप समझ  बैठे ड्रेगन को, सरहद पर हम बीन बजाय ।                               

काबू में जब कर न सके, सिर,  दर्द हमारा  बढ़ता जाय ।।

अरबों  नकली नोट छापकर , पाक उसे भारत  भिजवाय ।                           

*कोई बस ना चले हमारा ,  खिसियाकर बस हम रह जांय।।                                       

 

देता पाकिस्तान प्रशिक्षण,  आतंकी भारत आ जाय ।                                       

बमबारी, गोलीबारी कर,  खूब तबाही  दिया मचाय ।।                         

 

आएगा न  कोई बचाने ,  करना  होगा  हमें  उपाय ।                                     

ठोस नीति से काम बनेगा,  ढुल- मुल नीति काम ना आय।।                                              

 

चीन किसी की बात न माने, कौन उसे कब तक समझाय ।                                  

मिली भगत है पाक देश से,  बातों से हमको बहलाय।।                                     

 

अमरीका का नहीं भरोसा,  यहाँ कहे कुछ वहाँ बताय ।                                 

दुश्मन को पहचान गए हम,  चाहे भेष बदलकर आय।।                                           

 

मन काला है,  नीयत खोटी,  दोस्त नहीं दुश्मन कहलाय ।                      

खेल, कला या किसी बहाने, दुश्मन देश में घुस न पाय ।।                    

 

आजादी से बाद आज तक,  हम धोखे पर  धोखा खाय।                         

अब भी अगर सम्भल न पाए,  फिर तो बस भगवान बचाय।। 

.......................................................................                                             

मौलिक व अप्रकाशित  

*संशोधित 

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Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 2, 2014 at 12:42pm

आदरणीय विजय शंकर भाई,

आप ठीक कहते हैं , कई सौ बरस की गुलामी के बाद भी हमें अच्छे बुरे की पहचान न हो पाई इसका  एक प्रमुख कारण यही है कि हम अपने अतीत से कुछ सीखना ही नहीं चाहते। बार- बार जलील होकर भी हम उन्हीं  देशों  का दामन थामने  मज़बूर क्यों हो जाते हैं ? काश हम अपने साथ ही आज़ाद हुए कुछ छोटे देशों से ही कुछ सीखते कि सम्मान और गैरत क्या चीज है, किसे कहते हैं।  

मैने अपनी बात छंद में रखने का प्रयास किया है , रचना आपको पसंद आई , हृदय से धन्यवाद आभार 

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 1, 2014 at 9:11pm
"आजादी से बाद आज तक, हम धोखे पर धोखा खाय।
अब भी अगर सम्भल न पाए, फिर तो बस भगवान बचाय।। "
गंभीर विषय लिया है आपने , आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी , एक विचारणीय प्रश्न हमारे सामने सदैव यह रहता है कि जो लोग अपने अतीत से नहीं सीखते वे सदैव घाटे में रहते हैं , हम विलक्षण प्रतिभा वाले वर्तमान से ही भ्रमित हैं , अतीत में तो कई कारणवश हम जाते ही नहीं , अतीत से कुछ सीखना तो दूर हम अपने अतीत को न केवल अस्वीकार करते रहते हैं वरन उसे अपने लाभ और सुविधा के अनुरूप स्वीकार करते हैं , नई पीढ़ी का सामान्य अतीत ज्ञान गज़ब का है , पर हम ऐतिहासिक चेतना से मुक्त एवं प्रसन्न हैं .
आपको इस प्रभाव करती रचना के लिए बधाई .

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