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हास्य घनाक्षरी : ईलाज (गणेश जी बागी)

छंद : घनाक्षरी 

झट छायी चिंता-रेखा,

नीला-नीला पाँव देखा,
पहुँचे करीम चच्चा, शफ़ाख़ाना आस में.

देखते हकीम बोला,

पाँव में ज़हर फैला,
दोनों पाँव काट डाले, ज़िन्दग़ी की आस में.

बात हुई ज़ल्द साफ़,

कट गये पर पाँव,
डरता हकीम आया, चच्चा जी के पास में.

सुनो जी करीम भाई,

बात ये समझ आई,
लुंगी रंग छोड़ रही, बोला एक साँस में. :-)))))))))

(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 22, 2014 at 7:50pm

आदरणीय हरिबल्लभ शर्मा जी, आपकी सराहना प्रोत्साहित करती है, बहुत बहुत आभार .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 22, 2014 at 7:46pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, घनाक्षरी में हास्य पिरोने का यह प्रयास आपको अच्छा लगा, यह जानकार बहुत प्रोत्साहन मिला, बहुत बहुत आभार आदरणीय .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 22, 2014 at 7:40pm

रचना आपको गुदगुदा सकी, रचना सफल हुई, आभार आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 22, 2014 at 7:39pm

आदरणीय नरेन्द्र सिंह चौहान जी, सराहना और प्रथम प्रतिक्रिया हेतु हृदय से आभार .

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 22, 2014 at 7:18pm
वाह रे हकीम के रंग। बधाई इस हास्य पर , आदरणीय इंजी o गणेश जी बागी जी , सादर।
Comment by ram shiromani pathak on December 22, 2014 at 7:02pm

waaah waah zordaar hasya ghanakshari adarneey ganesh ji...............hardik badhai apko /saadar


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 22, 2014 at 6:56pm

आदरणीय बागी सर सुन्दर और अद्भुत घनाक्षरी की रचना हेतु हार्दिक बधाई 

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 22, 2014 at 6:12pm

वाह मज़ा आ गया बहुत खूब

Comment by Shyam Narain Verma on December 22, 2014 at 6:09pm

बहुत सुंदर और अनुपम रचना अभिव्यक्ति  के लिए  हार्दिक  बधाई  

Comment by भुवन निस्तेज on December 22, 2014 at 2:29pm
अरे बाप रे!
साहब कैसे हकीम है ये ?

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