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अश्क़ ऊपर जब उठा, उठ कर सितारा हो गया
जा मिला जब अश्क़ सागर से, वो खारा हो गया
चन्द मुस्कानें तुम्हारी शक़्ल में जो पा लिये
आज दिन भर के लिये अपना ग़ुजारा हो गया
चाहतें जब इक हुईं , तो दुश्मनी भूले सभी
कल पराया जो लगा था, आज प्यारा हो गया
ढूँढ कर तनहाइयाँ हम यादों में मश्गूल थे
रू ब रू आये तो यादों का खसारा हो गया
ख़्वाब में भी देख जो मंज़र, तड़प जाते थे हम
हर गली , हर चौक में अब वो नज़ारा हो गया
आप उस बुझते हुये से कोयले को फूँकिये
एक दिन पायेंगे वो फिर से शरारा हो गया
आँसुओं को रात भर पीते रहे , मदहोश थे
सुब्ह दम नज़रें मिलीं , समझो उतारा हो गया
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मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )
Comment
अश्क़ ऊपर जब उठा, उठ कर सितारा हो गया- अश्क , पानी होता है एंटी ग्रेविटी नहीं जाता उसे वाष्प बनना होगा और वो बादल हो सकता है सितारा नहीं। अश्क ka gun khara hota hai / अश्क ने जब रूप बदला अब्र-पारा हो गया; जब समंदर से मिला तो और khara हो गया
जा मिला जब अश्क़ सागर से, वो खारा हो गया
चन्द मुस्कानें तुम्हारी शक़्ल में हम पा लिये/ हम- plural
आज दिन भर के लिये अपना ग़ुजारा हो गया/अपना- singular
चाहतें जब इक हुईं , तो दुश्मनी भूले सभी / इक हुईं/ mil gayeen
कल पराया जो लगा था, आज प्यारा हो गया
ढूँढ कर तनहाइयाँ हम यादों में मश्गूल थे
रू ब रू आये तो यादों का खसारा हो गया- chalega
जा मिला जब अश्क़ सागर से, वो खारा हो गया.....बहुत सुन्दर रचना आ० गिरिराज जी हार्दिक बधाई...सादर!
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपका सुझाव मेरे लिये कभी तुच्छ नहीं होगा । मेरे लिये आपका सुझाव भी आदेश के समान है । मै अवश्य उस शे र मे सुधार करूंगा ।
गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीया राजेश जी सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका हार्दिक आभार ।
उचित सुझाव क्व लिये आपका बहुत धन्यवाद - मै उस शे र मे सुधार कर लूंगा ।
आदरणीय योगेन्द्र भाई , आपका तहे दिल से शुक्रिया ।
आ० अनुज
बेहतरीन ---- एक से बढ़कर एक शेर i म० राजेश कुमारी जी ने जो सलाह दे उसमें मेरी सम्मति है कि हमको की जगह उसका कर देने से आपका अर्थ बना रहेगा i मेरी तुच्छ मति है आपको मशवरा दूं इतनी क्षमता नहीं i
चन्द मुस्कानें तुम्हारी शक़्ल में हम पा लिये
आज दिन भर के लिये अपना ग़ुजारा हो गया-----उम्दा शेर वाह
चाहतें जब इक हुईं , तो दुश्मनी भूले सभी
कल पराया जो लगा था, आज प्यारा हो गया---क्या बात है
ख़्वाब में भी देख जो मंज़र, तड़प जाते थे हम
हर गली , हर चौक में हमको नज़ारा हो गया----हमको नजारा हो गया ...मेरे ख्याल से सही नहीं है ..अब वो नजारा हो गया करके देखिये
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० गिरिराज जी हार्दिक बधाई
आदरणीय श्याम नारायन भाई , उत्साह वर्धन के लिये बहुत बहुत शुक्रिया ।
आदरणीय गुमनाम भाई , तहे दिल से शुक्रिया , सराहना के लिये ।
आदरणीया वन्दना की , आपका हार्दिक आभार ।
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