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कौन जाने ?

बद्दुआओ में होता है असर 

वाणी के जहर 

ये काटते तो है

पर देते नहीं लहर

 

पुरा काल में

इन्हें कहते थे शाप

ऋषियों-मुनियों के पाप

दुर्वासा इसके

पर्याय थे आप

 

भोगता था

अभिशप्त वाणी की मार 

कभी शकुन्तला

या अहल्या सुकुमार

आह !आह ! ऋषि के

वे वाक्-प्रहार

 

मोक्ष भी

होता कभी शाप वह घोर

हंसता अभिशप्त का

जीवन मरोर

दुख के अर्णव में  

सारे सुख बोर

 

 

उनका शाप  

विष-बुझे तीर सा चले

गये सदैव निबल ही  

मुनि-सिद्ध से छले

वे ही समाज के थे

जीव भी भले 

 

कभी-कभी

हम भी देते हैं बद्दुआ

पर बताओ कभी कुछ

असर भी हुआ

किसी को वाणी के

जहर ने छुआ

 

तब बतलाओ 

मेरे मन के मधुर मौन

हम में और उनमे

दोनों में

श्रेष्ठ कौन ?

(मौलिक / अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 30, 2014 at 2:00pm

श्याम नारायन  वर्माजी

आपका आभार i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 30, 2014 at 1:59pm

उमेश कटारा जी

आपका बार बार आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 30, 2014 at 1:58pm

मिथिलेश वामनकर जी

आपका आभार  i आप स्वयं बहुत अच्छा लिखते हैं फिर यह विकार क्यों ? आपकी यह विनम्रता आपको महान बनाती है i सादर i i                               


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 30, 2014 at 11:50am

आदरनीय बड़े भाई गोपाल जी , इस बेमिसाल गीत रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें । 

Comment by Sushil Sarna on December 30, 2014 at 11:31am

कभी-कभी
हम भी देते हैं बद्दुआ
पर बताओ कभी कुछ
असर भी हुआ
किसी को वाणी के
जहर ने छुआ

तब बतलाओ
मेरे मन के मधुर मौन
हम में और उनमे
दोनों में
श्रेष्ठ कौन ?

वाह आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आपकी ये रचना बहुत ही गहन अर्थ को समेटे है। इस सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by khursheed khairadi on December 30, 2014 at 10:32am

तब बतलाओ 

मेरे मन के मधुर मौन

हम में और उनमे

दोनों में

श्रेष्ठ कौन ?

आदरणीय गोपालनारायण जी उम्दा रचना हुई है |सादर अभिनन्दन |

Comment by Shyam Narain Verma on December 30, 2014 at 9:48am

बेहद उम्दा हार्दिक बधाई आपको

सादर ............

Comment by umesh katara on December 30, 2014 at 8:50am

कभी-कभी

हम भी देते हैं बद्दुआ

पर बताओ कभी कुछ

असर भी हुआ

किसी को वाणी के

जहर ने छुआ,,,,,,,,,वाह सर बेहतरीन


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 30, 2014 at 12:32am

कभी-कभी

हम भी देते हैं बद्दुआ

पर बताओ कभी कुछ

असर भी हुआ

किसी को वाणी के

जहर ने छुआ

 

तब बतलाओ 

मेरे मन के मधुर मौन

हम में और उनमे

दोनों में

श्रेष्ठ कौन ?

वाह्ह्ह क्या बात है सर ! (आशीर्वाद दे कि मैं जब भी छंदों के बिना कविता लिखूं  तो कम से कम एक ऐसी रचना लिख सकूं ) 

नमन .... 

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