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एक तरही ग़ज़ल - देखता हूँ इस चमक में बेबसी सोई हुई ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122    2122    212 

" मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई -

( इस मिसरे पर गज़ल कहने की मैने भी कोशिश की है , आपके सामने रख रहा हूँ )

**************************************************************************** 

ग़म सभी बेदार लगते , हर खुशी सोई हुई

जग गई लगती है फिर से, बेकली सोई हुई  -

 

बेदार -जागे हुये, बेकली - अकुलाहट  

 

फैलती ही जा रही बारूद की बदबू जहाँ

बे ख़ुदी में लग रही बस्ती वही सोई हुई

जगमगाती लग रही है रात शह्रों की मगर

देखता हूँ इस चमक में बेबसी सोई हुई 

 

जड़- तने ख़ामोश लगते , नाचतीं हैं डालियाँ

सोचता हूँ , क्यों वहीं पर मुर्दनी सोई हुई

 

मुंतज़िर हूँ , कब कबा उधड़े , हक़ीकत हो अयाँ -

हर बनावट में कहीं है सादगी सोई हुई  

 

मुंतज़िर - प्रतीक्षा में , क़बा – चोगा

 

खुद को जो कामिल समझते हैं, उन्हें मालूम हो  - 

बात कोई है अधूरी सब में ही सोई हुई

कामिल – पूर्ण

 

क़ैद है मेरी नज़र में वो नज़ारा ख़ूब रू 

" मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई "

*****************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

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Comment by गिरिराज भंडारी on December 30, 2014 at 8:24pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपकी स्नेहिल सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 30, 2014 at 8:22pm

आदरणीय पाठकों से अनुरोध है कि निम्न शे र को --- 

खुद को जो कामिल समझते हैं, उन्हें मालूम हो  - 

बात कोई सी अधूरी सब में है सोई हुई

निम्नानुसार पढ़्ने की कृपा करें --

खुद को जो कामिल समझते हैं, उन्हें मालूम हो  - 

बात कोई है अधूरी सब में ही सोई हुई    

              


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 30, 2014 at 8:17pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , आपकी सराहना के लिये दिल से आभारी हूँ । मिसरा सच मे गलत है , उसे आप यूँ पढें ----

बात कोई है अधूरी सब में ही सोई हुई

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 30, 2014 at 8:15pm

VAH VAH  BHAYYEE JAAN

क़ैद है मेरी नज़र में वो नज़ारा ख़ूब रू 

" मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई "------------------ क्या खूब गजल कही है i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 30, 2014 at 8:14pm

आदरणीय दिनेश भाई , आपने सच कहा है , उस मिसरे मे गलती है , काफिया ही खा गया हूँ मै । आपकी सलाह भी उचित है । आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 30, 2014 at 7:08pm

आदरणीय गिरिराज सर,  बेहतरीन मतला .... बेहतरीन और  उम्दा ग़ज़ल.... आपको बहुत बहुत बधाई .

जगमगाती लग रही है रात शह्रों की मगर

देखता हूँ इस चमक में बेबसी सोई हुई .... बेहतरीन अशआर वाह्ह्ह 

//बात कोई सी अधूरी सब में है सोई हुई// इसे देख लीजियेगा... सादर 

Comment by दिनेश कुमार on December 30, 2014 at 6:30pm
बात कोई सी अधूरी सब में है सोई हुई....shayad yr hona tha....बात कोई hai अधूरी सब में hi सोई हुई... Meri baat ko anyatha n lena sir ji...

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 30, 2014 at 6:27pm

आदरणीय दिनेश भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार । आदरणीय , टंकण त्रुटि मै समझ नही पा रहा हूँ , अगर आप बता दें तो बात साफ कर पाउँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 30, 2014 at 6:21pm

आदरणीय अनुराग भाई, हौसला अफज़ाई  के लिये आपका दिली शुक्रिया ।

Comment by दिनेश कुमार on December 30, 2014 at 5:43pm
लाजवाब मतला, शानदार गिरह , उम्दा अशआर , मुकम्मल ग़ज़ल । क्या कहने .... वाह वाह। शायद सिक्सथ में टंकन त्रुटि है।

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