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ग़ज़ल- भाग २ धार समय की 8 + 8 + 8 (रोला मात्रिक)

किस सागर में  जान मिलेगी  धार  समय की 

कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की 

युगों युगों तक फैला है कुहसार  वसन  का                       कुहसार =पर्वतांचल 

कौन अज़ल से  बाँध रहा  दस्तार  समय की                    दस्तार = पगड़ी 

नोक कलम की  पर रखते हैं  काल तीन हम 

केवल हमने  स्वीकारी  ललकार  समय की 

ख़ार दर्द के  चुनकर गीत  उगायेंगे  हम 

कर जायेंगे  वादी  हम गुलज़ार  समय की 

तू  ऊषा की लाली   मैं संध्या  का केसर 

तेरे मेरे   बीच खड़ी  दीवार  समय की 

मोल जानते  हैं माटी का  हम बंजारे 

धाक जमेगी  क्या हम पर  ज़रदार  समय की                ज़रदार = धनी \मालदार 

मान गँवाकर   सोना -चाँदी   मिट्टी समझो 

रूह खरीदोगे क्या तुम  ख़ुद्दार समय की 

ये माह-ओ-' खुरशीद ' सितारे  इस अंबर के 

सदियों से करते  आये  बेगार समय की 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 2, 2015 at 10:46am
आदरणीय खुर्शीद जी वाह । इस बेहतरीन ग़ज़ल भाग दो के लिए दिल से दाद कुबूल कीजिये। बधाई।
इस पंक्ति को देख लीजियेगा
नोक कलम की पर रखते है -तीन -काल हम
संयोजन में अगर लफ़्ज़ों का स्थान और बदल सके तो। सादर

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