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कुछ नये काफ़िये --- ग़ज़ल धार समय की --३

किस सागर में जान मिलेगी धार समय की

कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की

तेरी यादों की बूबास घुलेगी ज्यूं ज्यूं

बढ़ती जाएगी त्यूं त्यूं महकार समय की

वक़्त कहाँ मिलता है दुनियावी पचड़ों से

मेरी ग़ज़लें सारी है बेकार समय की

वक़्त सिकंदर विश्व-विजेता सदियों से है

सुल्तानी लाफ़ानी है सरदार समय की

चंदा-सूरज गगन-पवन सब मौन खड़े हैं

आयु कौन बतलायेगा सुकुमार समय की

बैर भूलकर मीत बनें  सब  एक रहें सब 

सच मानो तो आज यही दरकार समय की 

'खुरशीद'-ओ-महताब सफ़ीने घूम रहे हैं

जाने कब होगी यह नदियाँ पार समय की

मौलिक व अप्रकाशित  

 

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Comment

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Comment by khursheed khairadi on January 6, 2015 at 10:49am

आदरणीय गिरिराज सर ,शकूर सर ,दिनेश जी , श्याम नारायण जी ,राम शिरोमणि जी , जवाहर लाल सिंह साहब , आलोक मित्तल साहब आप सभी की मुहब्बत मेरा सरमाया है | तहेदिल से शुक्रिया |सादर |

Comment by khursheed khairadi on January 6, 2015 at 10:44am

आदरणीय गोपालनारायण सर , मैं आप सभी गुणीजनों की छाया में ग़ज़ल का साधक ही बने रहना चाहता हूं क्यूंकि आदरणीय हबीब कैफ़ी साहब ने सस्नेह फ़रमाया था कि ' जो ग़ज़ल की बादशाहत का दावा करे, वो ग़ज़ल को सबसे कम जानने वालों में शुमार हो जाता है '

सादर | 

Comment by khursheed khairadi on January 6, 2015 at 10:39am

आदरणीय सौरभ सर , ग़ज़ल की दूसरी एवं तीसरी किश्त ऑनलाइन रिप्लाई बॉक्स पर काफ़ियों की नाव पर सवार होकर सीधे ही उतरी थी |इन दोनो में काग़ज़-क़लम तथा तक्ती बगैर ज्यूं की त्यूं सीधे जहन से रिप्लाई बॉक्स पर उतरे अशहार है |आप सभी को ये  कच्ची ग़ज़लें पसंद आ जाना ही इनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है | आपकी इस्लाह के बाद समरसता (monotony)  का सोंदर्य चरम पर है ,पाठक आप द्वारा सँवारे गये रूप  को स्वीकार करेंगे तो अति कृपा होगी |सादर नमन |

Comment by khursheed khairadi on January 6, 2015 at 10:30am

आदरणीय ,मिथिलेश सर ,हरिप्रकाश जी सर , अनुराग प्रतीक साहब ,आप सभी का स्नेह इसी तरह बना रहें |सादर आभार |

Comment by Alok Mittal on January 4, 2015 at 8:02pm

वाःह्ह वाह्ह्ह आदरणीय बहुत शानदार ग़ज़ल कही आपने

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 4, 2015 at 6:49pm

बैर भूलकर मीत बनें  सब  एक रहें सब 

सच मानो तो आज यही दरकार समय की 

यही है मांग समय की .... बेहतरीन सन्देश देती हुई गजल!

Comment by ram shiromani pathak on January 4, 2015 at 3:22pm
वाह खुर्शीद साहब ज़ोरदार ग़ज़ल।।हार्दिक बधाई आपको

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 4, 2015 at 10:52am

वाह लाजवाब जनाब खुर्शीद साहब लाजवाब बहुत बहुत बधाई आपको इस खूबसूरत गज़ल के लिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 3, 2015 at 8:43pm

वाह भाई खुर्शीद जी , क्या बात है , काफियों की बरसात ही हो गई , हर शेर लाजवाब हैं ! आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by दिनेश कुमार on January 3, 2015 at 7:20pm
जितनी तारीफ़ की जाए, कम है। वाह वाह वाह ...!!!!

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