For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Khursheed khairadi's Blog (52)

एक ग़ज़ल ---नहीं आता

एक ग़ज़ल ....

न याद आओ मुझे तुम कोई पल ऐसा नहीं आता

तुम्हारे ख़्वाब में फिर भी मेरा चेहरा नहीं आता



*तुम अपने बाप के शाने पे रखदो ख़्वाहिशें अपनी*

*मेरे बच्चों हक़ीक़त में कोई सांता नहीं आता*



मेरी ग़ज़लों में पढ़ लेना मेरे ग़म की इबारत तुम

मुझे गाना तो आता है मगर रोना नहीं आता



जिधर देखो उधर नफ़रत जहाँ जाओ वहाँ साज़िश

तअज्जुब है अदीबों आपको गुस्सा नहीं आता



ज़रा ख़ुश पेट होता है मगर दिल ख़ूब रोता है

मनीआर्डर तो आता है मगर बेटा नहीं… Continue

Added by khursheed khairadi on January 14, 2020 at 7:08pm — 5 Comments

दो हमशक्ल ग़ज़लें

एक बह्र ---दो हमशक़्ल ग़ज़ल

2122--2122--212

रस्म-ए-उल्फ़त है य' ऐसा कीजिए

रात-दिन उसको ही चाहा कीजिए

बदनसीबी का तमाशा कीजिए

आज फिर उसकी तमन्ना कीजिए

यूँ न हरदम मुस्कुराया कीजिए

जब सताए ग़म तो रोया कीजिए

ख़ुद को मसरूफ़ी दिखाया कीजिए

जब कभी बेकार बैठा कीजिए

अच्छा तो 'खुरशीद' जी हैं आप ही

आइए साहब उजाला कीजिए

©खुरशीद खैराड़ी जोधपुर । 9413408422



2122--2122--212

आइने में ख़ुद को देखा कीजिए

फिर…

Continue

Added by khursheed khairadi on March 6, 2019 at 8:24pm — 1 Comment

ग़ज़ल--बोझ उल्फ़त हो गई तो

ग़ज़ल--2122--2122

बोझ उल्फ़त हो गई तो...?

तेरी आदत हो गई तो...?



प्यार का इज़हार कर दूँ

तुझको नफ़रत हो गई तो...?



डर लगे है आशिक़ी से

यार आफ़त हो गई तो...?



मुझको कंकर तूने समझा

मेरी क़ीमत हो गई तो...?



दर्द अब भाने लगा है

दिल को राहत हो गई तो...?



बिन तेरे रुक जाए साँसे

ऐसी हालत हो गई तो...?



कितना ख़ुद को रोकता हूँ

मेरी ज़ुर्रत हो गई तो...?



बेवफ़ा ये तेरी यादें

दिल की दौलत हो गई… Continue

Added by khursheed khairadi on October 5, 2017 at 11:15pm — 12 Comments

प्रेम-पचीसी-भाग 4 (प्रीत-पगे दोहे)

प्रेम-पचीसी--भाग 4(प्रीत-पगे दोहे)



पाप कहूँ किसको भला, किसको समझूँ पुन्न ।

मैं जानूँ इतनी गणित, तुम बिन जीवन सुन्न ।। ...1



तुम मोहन की बाँसुरी, मैं राधा का हास ।

साथ तुम्हारा जब मिले, जीवन हो इक रास ।। ...2



दर्शन दे दो साँवरे, तरस रहे हैं नैन ।

मर जाऊँ मैं चैन से, जीती हूँ बेचैन ।।...3



सुध-बुध जी की खो गई, जबसे लागा हेत ।

मैं इक मछली साँवरे, विरहा तपती रेत ।।...4



बरजा तो माना नहीं, अब रोवे दिन-रैन ।

नैन मिलाकर खो… Continue

Added by khursheed khairadi on September 7, 2017 at 12:48pm — 3 Comments

प्रेम पचीसी --भाग 3 (प्रीत-पगे दोहे)

प्रेम-पचीसी--भाग-3 (प्रीत-पगे दोहे)

दाँत दुखे तो पाड़ दूँ, आँख दुखे दूँ फोड़ ।

घायल मन की पीर का, पास पिया के तोड़ ।। ...1



झाल बदन में उठ रही, जबसे लागी लाग ।

सावन बरसे नैन से, बुझे न फिर भी आग ।। ...2



होना था सो हो गया, अब तो करो उपाय ।

बाहर-भीतर आग है, पीड़ा सही न जाय ।। ...3



रोग लगा सो लग गया, छोड़ो सोच-विचार ।

अंग-अंग काटो भले, ढूँढ़ों कुछ उपचार ।। ...4



ज्यों-ज्यों करती हूँ दवा, त्यों-त्यों बढ़ता रोग ।

बैद बनो तुम साँवरे, कब… Continue

Added by khursheed khairadi on September 5, 2017 at 12:53pm — 7 Comments

प्रेम पचीसी --भाग 2 (प्रीत-पगे दोहे)

प्रेम-पचीसी--भाग 2 (प्रीत-पगे दोहे)

कौन रसायन बह रहा, रग-रग फैली आग ।

स्त्राव हुआ किस ग्रन्थि से, धड़कन गाए राग ।। ...1



दर्पण देखूँ सौ दफ़ा, फिर-फिर बाँछूँ बाल ।

सूरत अपनी देखकर, गाल हुए हैं लाल ।। ...2



मैं मछली सी हो गयी, सागर तेरा ध्यान ।

बाहर निकसूँ तो चली, जाए मेरी जान ।। ... 3



जित देखूँ उत साँवरे, दिखे तिहारा रूप ।

अंधी होकर प्रेम में, पाए नैन अनूप ।। ...4



लज़्ज़त तेरी दीद की, याद मुझे है यार ।

दीदों से आँसू नहीं, टपक… Continue

Added by khursheed khairadi on September 2, 2017 at 6:03am — 6 Comments

प्रेम पचीसी(दोहे)

प्रीत-पगे दोहे (प्रेम-पचीसी)

मुझको मुझसे छीनकर, बनते हो अनजान ।

निर्मोही तुमको कहूँ, या समझूँ नादान ।। ... 1



झरना साजन तुम भए, मैं जन्मों की प्यास ।

पीकर भी प्यासी मरुँ, रहता कंठ उदास ।। ... 2



प्रीत छुपाऊँ किस तरह, कैसे ढाँकूँ लाज ।

फूलों से छुपता नहीं, काँटों का यह ताज ।। ... 3



तुम सावन के मेघ हो, मैं मरुधर की रेत ।

जा बरसे हो बाग़ में, कैसे पनपे हेत ।। ... 4



संग तुम्हारे जो कटा, वो पल है अनमोल ।

तुम बिन सूना जो रहा, वो… Continue

Added by khursheed khairadi on August 31, 2017 at 11:45am — 5 Comments

ग़ज़ल --2122--1122--1122--112(22)

2122--1122--1122--112



फैसले के लिए सिक्का न उछाला जाए

जान माँगे जो वतन वक़्त न टाला जाए



हाँ मैं हूँ मुल्क़ तुम्हारा न उछालो मिट्टी

नौज़वानों मुझे गड्डे से निकाला जाए



अच्छे अच्छों के किये होश ठिकाने लेकिन

होश में हो जो उसे कैसे सँभाला जाए



आपने कह दिया झट से कि मैं, मैं हूँ ही नहीं

मेरे भीतर मुझे थोड़ा तो खँगाला जाए



ज़ह्र के दाँत उखाड़ो कि कुचल डालो फन

आस्तीनों में यूँ नागों को न पाला जाए



मुफ़लिसी ने मिरी…

Continue

Added by khursheed khairadi on July 30, 2017 at 11:00pm — 7 Comments

ग़ज़ल -- किसी का कहा मानता ही कहाँ है

122--122--122--122



किसी का कहा मानता ही कहाँ है

वो अपनी ख़ता मानता ही कहाँ है



न काफ़िर कहूँ तो उसे मैं कहूँ क्या

है बुत में ख़ुदा मानता ही कहाँ है



है छोटी बहुत सोच उसकी करें क्या

किसी को बड़ा मानता ही कहाँ है



शिकायत यही है हर इक आदमी की

मेरी दूसरा मानता ही कहाँ है



मेरे पास हल है, सभी मुश्किलों का

कोई मश् वरा मानता ही कहाँ है



लगाना पड़ा झूठ का मुँह पे ग़ाज़ा

कि सच आइना मानता ही कहाँ है



भला आदमी है… Continue

Added by khursheed khairadi on July 10, 2017 at 9:00pm — 15 Comments

रघुनाथ ..ग़ज़ल 2122—1122—1122—22

2122—1122—1122—22

रूठ मत जाना कभी दीन दयाला मुझसे

रखना रघुनाथ हमेशा यही नाता मुझसे

 

हर मनोरथ हुआ है सिद्ध कृपा से तेरी

तू न होता तो हर इक काम बिगड़ता मुझसे

 

नाव तुमने लगा दी पार वगरना रघुवर

इस भँवर में था बड़ी दूर किनारा मुझसे

 

जैसे शबरी से अहिल्या से निभाया राघव

भक्तवत्सल सदा यूँ प्रेम निभाना मुझसे

 

एक विश्वास तुम्हारा है मुझे रघुनंदन

दूर जाना न कोई करके बहाना मुझसे

 

जानकी नाथ…

Continue

Added by khursheed khairadi on March 28, 2015 at 11:16pm — 9 Comments

ग़ज़ल ..22 22 22 22 22 2 ....सीला माँ (शीतला माता )

ताप घृणा का शीतल करदे सीला माँ

इस ज्वाला को तू जल करदे सीला माँ

 

इस मन में मद दावानल सा फैला है

करुणा-नद की कलकल करदे सीला माँ

 

सूख गया है नेह ह्रदय का ईर्ष्या से

इस काँटे को कोंपल करदे सीला माँ

 

प्यास लबों पर अंगारे सी दहके है

हर पत्थर को छागल करदे सीला माँ

 

सूरज सर पर तपता है दोपहरी में

सर पर अपना करतल करदे सीला माँ

 

दूध दही हो जाता है शीतलता से

भाप जमा कर बादल करदे सीला…

Continue

Added by khursheed khairadi on March 13, 2015 at 11:13am — 15 Comments

गीतिका8+8....बरगद पीपल

बरगद पीपल पनघट छूटे 

बालसखा सब नटखट छूटे 

गोपालों की शोख़ ठिठोली 

चौपालों के जमघट छूटे 

बालू के वो दुर्ग महल सब 

तालाबों के वो तट छूटे 

झालर संझा वो चरणामृत 

मंदिर के चौड़े पट छूटे 

मॉलों में क्या कूके कोयल 

अमराई के झुरमुट छूटे

 

धूम कहाँ वो बचपन वाली 

टोली के सब मर्कट छूटे 

हमसे छूटा  गाँव हमारा 

जीने का अब जीवट छूटे

मौलिक व अप्रकाशित  

Added by khursheed khairadi on March 12, 2015 at 12:32pm — 22 Comments

ग़ज़ल १२२२-१२२२\१२२२ १२२२ ..करें कोशिश सभी मिलकर हसीं दुनिया बना दें फिर

करें कोशिश सभी मिलकर हसीं दुनिया बना दें फिर 

चलो जन्नत से भी बढ़कर जहां अपना बना दें फिर

लगाकर रेत में पौधे पसीने से चलो सींचें 

ये सहरा सब्ज़ था पहले यहाँ बगिया बना दें फिर

मेरी मानो रियाज़त से बदल जाती है तकदीरें 

हथेली की लकीरों में कोई नक्शा बना दें फिर

जलाकर खेत मेरे गाँव के बोले सियासतदां  

इन्हें रोटी नहीं मिलती इसे मुद्दा बना दें फिर   

दिलों के दरमियां कोई रुकावट क्यों  रहे यारो

गिराकर इन…

Continue

Added by khursheed khairadi on March 10, 2015 at 11:00pm — 20 Comments

गीतिका ... ८+८+६ २२-२२-२२-२२-२२-२.....आ जायें

इस होली पर रंग लगाने आ जायें

बचपन के कुछ यार पुराने आ जायें

 

होली-फागुन बरखा-सावन या जाड़ा

यादें तेरी ढूंढ बहाने आ जायें

 

दीवाने हो झूमा करते थे जिन पर

होठों पर वे मस्त तराने आ जायें

 

होली सुलगे भस्म न हो प्रहलाद कभी

सब नेकी का साथ निभाने आ जायें

 

सतरंगी थे इनके वादे कल यारों

लोग सियासी आज निभाने आ जायें

 

जीवन में हो पागलपन भी थोड़ा सा

दीवानों के संग सयाने आ…

Continue

Added by khursheed khairadi on March 4, 2015 at 1:40pm — 7 Comments

होली ग़ज़ल-उस बस्ती में

२११-२११-२११-२११-२११-२११

होली का कुछ और मज़ा था उस बस्ती में

जश्न नहीं था एक नशा था उस बस्ती में

 

दिल के जंगल में यादों के टेसू लहके

तेरा मेरा प्यार नया था उस बस्ती में

 

शहरों में क्या धूम मचेगी, होली पर वो

भांग घुटी थी रंग जमा था उस बस्ती में

 

चंग बजाते घर घर जाते रसियों के दल   

हरदम दिल का द्वार खुला था उस बस्ती में

 

जोश युवाओं का भी ठंडा ठंडा है अब

बूढों का भी जोश युवा था उस बस्ती…

Continue

Added by khursheed khairadi on March 1, 2015 at 9:00pm — 21 Comments

गीतिका ---शायर

२११--२११/२११--२११/२११ २

मंचों को तज गाँवों में जा अब शायर

धन को मत भज गुर्बत को गा अब शायर

 

दूर गगन पर तूने सपने जा टाँगे   

इस धरती पर ज़न्नत को ला अब शायर

 

जाम बुझायेगें क्या तिसना इस  मन की

गम को पिघला छलका गंगा अब शायर

 

आहों से भी ज्यादा ठंडी हैं रातें

फुटपाथों पर नंगे तन आ अब शायर

 

चाँद सितारों से मत बहला दुनिया को  

इस माटी का कण कण चमका अब शायर

 

अच्छाई को ढाल बुराई की मत…

Continue

Added by khursheed khairadi on March 1, 2015 at 12:30am — 10 Comments

गीतिका ... ८+८+६ २२-२२-२२-२२-२२-२

आहत युग का दर्द चुराने आया हूं

बेकल जग को गीत सुनाने आया हूं

 

कोमल करुणा भूल गये पाषाण हुये

दिल में सोये देव जगाने आया हूं

 

आँगन आँगन वृक्ष उजाले का पनपे

दहली दहली दीप जलाने आया हूं

 

ग़ालिब तुलसी मीर कबीरा का वंशज

मैं भी अपना दौर सजाने आया हूं

 

दिल्ली बतला गाँव अभावों में क्यूं है

नीयत पर फिर प्रश्न उठाने आया हूं

 

सिस्टम इतना भ्रष्ट हुआ, जिंदा होकर

इसके दस्तावेज़ जुटाने आया…

Continue

Added by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 10:09am — 11 Comments

ग़ज़ल--१२२२--१२२२--१२२२--१२२२...मुझे मालूम है यारों

मेरा देहात क्यूँ रोटी से भी महरूम है यारों

कहाँ अटका है रिज़्के-हक़ मुझे मालूम है यारों

 

उठा पेमेंट उसका क्यूँ नरेगा की मज़ूरी से

घसीटाराम तो दो साल से मरहूम है यारों

करें किससे शिकायत हम , कहाँ जायें गिला लेकर

व्यवस्था हो गई ज़ालिम बशर मज़लूम है यारों

सिखाओ मत इसे बातें सियासत की विषैली तुम

मेरा देहात का दिल तो बड़ा मासूम है यारों

लिए फिरता है वो कानून अपनी जेब में हरदम

जो कायम कायदों पर है बशर वो बूम…

Continue

Added by khursheed khairadi on February 25, 2015 at 12:49pm — 22 Comments

ग़ज़ल--122--122 / 122 --122 चमन की कहानी

कहूँ आपसे क्या थकन की कहानी

न समझोगे गाफ़िल बदन की कहानी

 

बनाती है ज़र्रे को रोशन सितारा

लुभाती बहुत है लगन की कहानी

 

समझ लो य’ अश्कों का सावन निरख कर

लबों से कहूँ क्या नयन की कहानी

 

जली उँगलियों से ज़रा पूछ आओ

कहेंगे फफोले हवन की कहानी

 

हर इक गम को ढाला ग़ज़ल में मुसल्सल

है झूठी अदीबों ग़बन की कहानी

 

सुनाते मिलेंगे चहकते चहकते

कफ़स में परिंदे चमन की कहानी

 

किरन दर…

Continue

Added by khursheed khairadi on February 25, 2015 at 11:00am — 8 Comments

ग़ज़ल---१२-२२ १२-२२ १२-२२ आ रहा है अब

ग़ज़ल में दर्द ढल कर आ रहा है अब

कोई दरिया मचल कर आ रहा है अब

 

बड़े साहब ने इक साँचा बनाया है

जिसे देखो पिघल कर आ रहा है अब

 

ज़रा सा होश खोते ही हुआ जादू

जुबां पर सच निकल कर आ रहा है अब

 

चलो अच्छा हुआ जो ठोकरें खायी

गिरा लेकिन सँभल कर आ रहा है अब

 

बनाया मोम से पत्थर जिसे मैंने

मेरी जानिब उछल कर आ रहा है अब

 

गरज़ ढुलते ही रस्ता हो गया चिकना

मेरे घर वो फिसल कर आ रहा है…

Continue

Added by khursheed khairadi on February 23, 2015 at 10:23am — 21 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service