Added by khursheed khairadi on January 14, 2020 at 7:08pm — 5 Comments
एक बह्र ---दो हमशक़्ल ग़ज़ल
2122--2122--212
रस्म-ए-उल्फ़त है य' ऐसा कीजिए
रात-दिन उसको ही चाहा कीजिए
बदनसीबी का तमाशा कीजिए
आज फिर उसकी तमन्ना कीजिए
यूँ न हरदम मुस्कुराया कीजिए
जब सताए ग़म तो रोया कीजिए
ख़ुद को मसरूफ़ी दिखाया कीजिए
जब कभी बेकार बैठा कीजिए
अच्छा तो 'खुरशीद' जी हैं आप ही
आइए साहब उजाला कीजिए
©खुरशीद खैराड़ी जोधपुर । 9413408422
2122--2122--212
आइने में ख़ुद को देखा कीजिए
फिर…
Added by khursheed khairadi on March 6, 2019 at 8:24pm — 1 Comment
Added by khursheed khairadi on October 5, 2017 at 11:15pm — 12 Comments
Added by khursheed khairadi on September 7, 2017 at 12:48pm — 3 Comments
Added by khursheed khairadi on September 5, 2017 at 12:53pm — 7 Comments
Added by khursheed khairadi on September 2, 2017 at 6:03am — 6 Comments
Added by khursheed khairadi on August 31, 2017 at 11:45am — 5 Comments
2122--1122--1122--112
फैसले के लिए सिक्का न उछाला जाए
जान माँगे जो वतन वक़्त न टाला जाए
हाँ मैं हूँ मुल्क़ तुम्हारा न उछालो मिट्टी
नौज़वानों मुझे गड्डे से निकाला जाए
अच्छे अच्छों के किये होश ठिकाने लेकिन
होश में हो जो उसे कैसे सँभाला जाए
आपने कह दिया झट से कि मैं, मैं हूँ ही नहीं
मेरे भीतर मुझे थोड़ा तो खँगाला जाए
ज़ह्र के दाँत उखाड़ो कि कुचल डालो फन
आस्तीनों में यूँ नागों को न पाला जाए
मुफ़लिसी ने मिरी…
Added by khursheed khairadi on July 30, 2017 at 11:00pm — 7 Comments
Added by khursheed khairadi on July 10, 2017 at 9:00pm — 15 Comments
2122—1122—1122—22
रूठ मत जाना कभी दीन दयाला मुझसे
रखना रघुनाथ हमेशा यही नाता मुझसे
हर मनोरथ हुआ है सिद्ध कृपा से तेरी
तू न होता तो हर इक काम बिगड़ता मुझसे
नाव तुमने लगा दी पार वगरना रघुवर
इस भँवर में था बड़ी दूर किनारा मुझसे
जैसे शबरी से अहिल्या से निभाया राघव
भक्तवत्सल सदा यूँ प्रेम निभाना मुझसे
एक विश्वास तुम्हारा है मुझे रघुनंदन
दूर जाना न कोई करके बहाना मुझसे
जानकी नाथ…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 28, 2015 at 11:16pm — 9 Comments
ताप घृणा का शीतल करदे सीला माँ
इस ज्वाला को तू जल करदे सीला माँ
इस मन में मद दावानल सा फैला है
करुणा-नद की कलकल करदे सीला माँ
सूख गया है नेह ह्रदय का ईर्ष्या से
इस काँटे को कोंपल करदे सीला माँ
प्यास लबों पर अंगारे सी दहके है
हर पत्थर को छागल करदे सीला माँ
सूरज सर पर तपता है दोपहरी में
सर पर अपना करतल करदे सीला माँ
दूध दही हो जाता है शीतलता से
भाप जमा कर बादल करदे सीला…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 13, 2015 at 11:13am — 15 Comments
बरगद पीपल पनघट छूटे
बालसखा सब नटखट छूटे
गोपालों की शोख़ ठिठोली
चौपालों के जमघट छूटे
बालू के वो दुर्ग महल सब
तालाबों के वो तट छूटे
झालर संझा वो चरणामृत
मंदिर के चौड़े पट छूटे
मॉलों में क्या कूके कोयल
अमराई के झुरमुट छूटे
धूम कहाँ वो बचपन वाली
टोली के सब मर्कट छूटे
हमसे छूटा गाँव हमारा
जीने का अब जीवट छूटे
मौलिक व अप्रकाशित
Added by khursheed khairadi on March 12, 2015 at 12:32pm — 22 Comments
करें कोशिश सभी मिलकर हसीं दुनिया बना दें फिर
चलो जन्नत से भी बढ़कर जहां अपना बना दें फिर
लगाकर रेत में पौधे पसीने से चलो सींचें
ये सहरा सब्ज़ था पहले यहाँ बगिया बना दें फिर
मेरी मानो रियाज़त से बदल जाती है तकदीरें
हथेली की लकीरों में कोई नक्शा बना दें फिर
जलाकर खेत मेरे गाँव के बोले सियासतदां
इन्हें रोटी नहीं मिलती इसे मुद्दा बना दें फिर
दिलों के दरमियां कोई रुकावट क्यों रहे यारो
गिराकर इन…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 10, 2015 at 11:00pm — 20 Comments
इस होली पर रंग लगाने आ जायें
बचपन के कुछ यार पुराने आ जायें
होली-फागुन बरखा-सावन या जाड़ा
यादें तेरी ढूंढ बहाने आ जायें
दीवाने हो झूमा करते थे जिन पर
होठों पर वे मस्त तराने आ जायें
होली सुलगे भस्म न हो प्रहलाद कभी
सब नेकी का साथ निभाने आ जायें
सतरंगी थे इनके वादे कल यारों
लोग सियासी आज निभाने आ जायें
जीवन में हो पागलपन भी थोड़ा सा
दीवानों के संग सयाने आ…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 4, 2015 at 1:40pm — 7 Comments
२११-२११-२११-२११-२११-२११
होली का कुछ और मज़ा था उस बस्ती में
जश्न नहीं था एक नशा था उस बस्ती में
दिल के जंगल में यादों के टेसू लहके
तेरा मेरा प्यार नया था उस बस्ती में
शहरों में क्या धूम मचेगी, होली पर वो
भांग घुटी थी रंग जमा था उस बस्ती में
चंग बजाते घर घर जाते रसियों के दल
हरदम दिल का द्वार खुला था उस बस्ती में
जोश युवाओं का भी ठंडा ठंडा है अब
बूढों का भी जोश युवा था उस बस्ती…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 1, 2015 at 9:00pm — 21 Comments
२११--२११/२११--२११/२११ २
मंचों को तज गाँवों में जा अब शायर
धन को मत भज गुर्बत को गा अब शायर
दूर गगन पर तूने सपने जा टाँगे
इस धरती पर ज़न्नत को ला अब शायर
जाम बुझायेगें क्या तिसना इस मन की
गम को पिघला छलका गंगा अब शायर
आहों से भी ज्यादा ठंडी हैं रातें
फुटपाथों पर नंगे तन आ अब शायर
चाँद सितारों से मत बहला दुनिया को
इस माटी का कण कण चमका अब शायर
अच्छाई को ढाल बुराई की मत…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 1, 2015 at 12:30am — 10 Comments
आहत युग का दर्द चुराने आया हूं
बेकल जग को गीत सुनाने आया हूं
कोमल करुणा भूल गये पाषाण हुये
दिल में सोये देव जगाने आया हूं
आँगन आँगन वृक्ष उजाले का पनपे
दहली दहली दीप जलाने आया हूं
ग़ालिब तुलसी मीर कबीरा का वंशज
मैं भी अपना दौर सजाने आया हूं
दिल्ली बतला गाँव अभावों में क्यूं है
नीयत पर फिर प्रश्न उठाने आया हूं
सिस्टम इतना भ्रष्ट हुआ, जिंदा होकर
इसके दस्तावेज़ जुटाने आया…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 10:09am — 11 Comments
मेरा देहात क्यूँ रोटी से भी महरूम है यारों
कहाँ अटका है रिज़्के-हक़ मुझे मालूम है यारों
उठा पेमेंट उसका क्यूँ नरेगा की मज़ूरी से
घसीटाराम तो दो साल से मरहूम है यारों
करें किससे शिकायत हम , कहाँ जायें गिला लेकर
व्यवस्था हो गई ज़ालिम बशर मज़लूम है यारों
सिखाओ मत इसे बातें सियासत की विषैली तुम
मेरा देहात का दिल तो बड़ा मासूम है यारों
लिए फिरता है वो कानून अपनी जेब में हरदम
जो कायम कायदों पर है बशर वो बूम…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 25, 2015 at 12:49pm — 22 Comments
कहूँ आपसे क्या थकन की कहानी
न समझोगे गाफ़िल बदन की कहानी
बनाती है ज़र्रे को रोशन सितारा
लुभाती बहुत है लगन की कहानी
समझ लो य’ अश्कों का सावन निरख कर
लबों से कहूँ क्या नयन की कहानी
जली उँगलियों से ज़रा पूछ आओ
कहेंगे फफोले हवन की कहानी
हर इक गम को ढाला ग़ज़ल में मुसल्सल
है झूठी अदीबों ग़बन की कहानी
सुनाते मिलेंगे चहकते चहकते
कफ़स में परिंदे चमन की कहानी
किरन दर…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 25, 2015 at 11:00am — 8 Comments
ग़ज़ल में दर्द ढल कर आ रहा है अब
कोई दरिया मचल कर आ रहा है अब
बड़े साहब ने इक साँचा बनाया है
जिसे देखो पिघल कर आ रहा है अब
ज़रा सा होश खोते ही हुआ जादू
जुबां पर सच निकल कर आ रहा है अब
चलो अच्छा हुआ जो ठोकरें खायी
गिरा लेकिन सँभल कर आ रहा है अब
बनाया मोम से पत्थर जिसे मैंने
मेरी जानिब उछल कर आ रहा है अब
गरज़ ढुलते ही रस्ता हो गया चिकना
मेरे घर वो फिसल कर आ रहा है…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 23, 2015 at 10:23am — 21 Comments
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