२११--२११/२११--२११/२११ २
मंचों को तज गाँवों में जा अब शायर
धन को मत भज गुर्बत को गा अब शायर
दूर गगन पर तूने सपने जा टाँगे
इस धरती पर ज़न्नत को ला अब शायर
जाम बुझायेगें क्या तिसना इस मन की
गम को पिघला छलका गंगा अब शायर
आहों से भी ज्यादा ठंडी हैं रातें
फुटपाथों पर नंगे तन आ अब शायर
चाँद सितारों से मत बहला दुनिया को
इस माटी का कण कण चमका अब शायर
अच्छाई को ढाल बुराई की मत कर
सच्चाई को यूं मत झुठला अब शायर
मंचों पर सर पंची करने वालों को
औसत जन की पीड़ा समझा अब शायर
छोड़ कलम को हँसिया ले कर चल साथी
खेतों में हल लेकर बढ़ जा अब शायर
घोर ग़रीबी पसरी है देहातों में
कैसे उबरें इस से बतला अब शायर
लोहे का घन हाथों में ले हँसकर तू
चाँदी के ये तमगे ठुकरा अब शायर
गम को यूँ ‘खुरशीद’ पिरो कर ग़ज़लों में
कहलायेगा तू भी अच्छा अब शायर
.
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय खुर्शीद साहब हर बार की तरह शानदार रचना
लोहे का घन हाथों में ले हँसकर तू
चाँदी के ये तमगे ठुकरा अब शायर
गम को यूँ ‘खुरशीद’ पिरो कर ग़ज़लों में
कहलायेगा तू भी अच्छा अब शायर .......बहुत सुन्दर हार्दिक बधाई ! सादर
बहुत उम्दा गजल (हिंदी गजल- गीतिका) रचने के लिए हार्दिक बधाई श्री खुर्शीद खैराडी जी -
जाम बुझायेगें क्या तिसना इस मन की
गम को पिघला छलका गंगा अब शायर - बहुत खूब
चाँद सितारों से मत बहला दुनिया को
इस माटी का कण कण चमका अब शायर - सार्थक भाव
आदरणीय खुर्शीद भाई , क्या बेहतरीन ग़ज़ल कही है भाई , सराहना के लिये शब्द नहीं मिल रहे हैं । बस हर शे र पर वाह करता जा रहा हूँ । दिली मुबारक बाद दे रहा हूँ क़ुबूल करें ॥
आहों से भी ज्यादा ठंडी हैं रातें
फुटपाथों पर नंगे तन आ अब शायर........wah wah sir ,,,,aaj laga ki ....bato'n se itar kuch is tarah bhi gazal ko bhi unchai bakshi ja sakti hai ...zaroorat to isi ki hai .....behatreen
मंचों पर सर पंची करने वालों को
औसत जन की पीड़ा समझा अब शायर
क्या गहन बात कही है इस गीतिका के जरिए आपने काश शायर जो आह्वन किया गया है उसे लोग समझें और
चाँद सितारों से मत बहला दुनिया को
इस माटी का कण कण चमका अब शायर
वाली बात साबित हो पर इसके लिए ज़रुरी है कि
लोहे का घन हाथों में ले हँसकर तू
चाँदी के ये तमगे ठुकरा अब शायर
उम्मीद है कुछ बदलाव आएगा |
जवाब नही आपका ..आ. खुर्शीद जी ,,लाजवाब |हार्दिक बधाई आपको |
आदरणीय खुर्शीद सर, बहुत उम्दा और खुबसूरत ग़ज़ल हुई है, आज की ग़ज़ल की श्रेणी में ये ग़ज़ल भी बेहतरीन है.
मंचों को तज गाँवों में जा अब शायर
धन को मत भज गुर्बत को गा अब शायर......... बेहतरीन मतला
दूर गगन पर तूने सपने जा टाँगे
इस धरती पर ज़न्नत को ला अब शायर.... वाह वाह
लोहे का घन हाथों में ले हँसकर तू
चाँदी के ये तमगे ठुकरा अब शायर... बेहतरीन
शायर के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत .... बहुत खूब
शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं ...
सौ रंग लगाया है , होली में जहाँ तू ने
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.
लोहे का घन हाथों में ले हँसकर तू
चाँदी के ये तमगे ठुकरा अब शायर------------------behtareen. sublime . aa0 khursheed jee
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