आहत युग का दर्द चुराने आया हूं
बेकल जग को गीत सुनाने आया हूं
कोमल करुणा भूल गये पाषाण हुये
दिल में सोये देव जगाने आया हूं
आँगन आँगन वृक्ष उजाले का पनपे
दहली दहली दीप जलाने आया हूं
ग़ालिब तुलसी मीर कबीरा का वंशज
मैं भी अपना दौर सजाने आया हूं
दिल्ली बतला गाँव अभावों में क्यूं है
नीयत पर फिर प्रश्न उठाने आया हूं
सिस्टम इतना भ्रष्ट हुआ, जिंदा होकर
इसके दस्तावेज़ जुटाने आया हूं
सावन हारे जिस दावानल के आगे
अश्कों से वो आग बुझाने आया हूं
आज़ादी के उत्सव में क्यूं लगता है
बरबादी का जश्न मनाने आया हूं
दिल की बस्ती तुझ बिन उजड़ी लगती है
यादों का इक गाँव बसाने आया हूं
भावों के इस उजड़े मरुथल में फिर से
ग़ज़लों का इक बाग़ लगाने आया हूं
मैं ‘खुरशीद’ गगन के माथे पर छितरा
शब का काला जाल हटाने आया हूं
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत सुंदर निः शब्द हूँ ...
आदरणीय खुर्शीद साहब ,फिर से कमाल की रचना ,बहुत बढ़िया ,हार्दिक बधाई आपको !
सावन हारे जिस दावानल के आगे
अश्कों से वो आग बुझाने आया हूं....गज़ब
सावन हारे जिस दावानल के आगे
अश्कों से वो आग बुझाने आया हूं
आज़ादी के उत्सव में क्यूं लगता है
बरबादी का जश्न मनाने आया हूं
वाहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहह
बहुत खूबसूरत उम्दा ,लाजबाब ..जितनी तारीफ करूँ कम होगी
ग़ालिब तुलसी मीर कबीरा का वंशज
मैं भी अपना दौर सजाने आया हूं------शानदार
सावन हारे जिस दावानल के आगे
अश्कों से वो आग बुझाने आया हूं-----क्या कहने
आज़ादी के उत्सव में क्यूं लगता है
बरबादी का जश्न मनाने आया हूं----सच में विचारणीय
दिल की बस्ती तुझ बिन उजड़ी लगती है
यादों का इक गाँव बसाने आया हूं------उत्कृष्ट शेर
ये शेर तो विशेष दाद के हक़दार हैं
इस लाजबाब गीतिका के लिए हार्दिक बधाई आ० खुर्शीद भैय्या.
आदरणीय खुर्शीद सर, जब आपकी ग़ज़लों से गुजरता हूँ तो लगता माँ सरस्वती की पूजा कर रहा हूँ. ग़ज़ल कैसे होती है, और क्यों कहते है ग़ज़ल, ये आपकी ग़ज़लों से गुजरते हुए समझ आता है. आदरणीय सौरभ सर, ने आपकी एक ग़ज़ल पर टिप्पणी की थी ये है आज की ग़ज़ल. आपकी इस ग़ज़ल के लिए मैं उसी टिप्पणी को दोहराता हूँ. मतले से लेकर मकते तक ग़ज़ल कमाल है, एक जादू सा है, लफ़्ज़ों का जादू, अचंभित और चमत्कृत हो जाता हूँ आपके अशआर पढ़कर. एक एक अशआर दिल में उतर गया. अशआर इतने उम्दा है कि कोट किसे करूं, समझ नहीं पा रहा हूँ. एक को कोट करना दुसरे से अन्याय वाली स्थिति है. इसलिए पूरी ग़ज़ल कोट कर रहा हूँ-
आहत युग का दर्द चुराने आया हूं
बेकल जग को गीत सुनाने आया हूं.......... शानदार मतला... सकारात्मक.... आशावादी...और प्रेरणास्पद
कोमल करुणा भूल गये पाषाण हुये
दिल में सोये देव जगाने आया हूं......... वाह वाह इस पुण्य कर्म में हम भी आपके साथ है.
आँगन आँगन वृक्ष उजाले का पनपे
दहली दहली दीप जलाने आया हूं............ वाह वाह ....आशावादी...और प्रेरणास्पद
ग़ालिब तुलसी मीर कबीरा का वंशज
मैं भी अपना दौर सजाने आया हूं......... ये तो दिल ही उड़ा ले गया. वाकई में आप अपना दौर सजा
दिल्ली बतला गाँव अभावों में क्यूं है
नीयत पर फिर प्रश्न उठाने आया हूं....... वाह वाह क्या प्रश्न उठाया है ....जवाब देते न बनेगा दिल्ली से
सिस्टम इतना भ्रष्ट हुआ, जिंदा होकर
इसके दस्तावेज़ जुटाने आया हूं.............. वाह वाह बहुत बेहतरीन
सावन हारे जिस दावानल के आगे
अश्कों से वो आग बुझाने आया हूं
आज़ादी के उत्सव में क्यूं लगता है
बरबादी का जश्न मनाने आया हूं............. वो सत्य जो जान कर भी नहीं मानते
दिल की बस्ती तुझ बिन उजड़ी लगती है
यादों का इक गाँव बसाने आया हूं............. सुन्दर परिकल्पना
भावों के इस उजड़े मरुथल में फिर से
ग़ज़लों का इक बाग़ लगाने आया हूं............ सुन्दर
मैं ‘खुरशीद’ गगन के माथे पर छितरा
शब का काला जाल हटाने आया हूं ............... वाह वाह क्या खूब मक्ता हुआ है
पूरी ग़ज़ल पर दिल से दाद कुबूल फरमाए. ये आपकी कलम का कमाल दीवाना कर देता है बस झूम जाता हूँ. पढ़कर भावविभोर हूँ, आपको बस नमन ही कह पा रहा हूँ.
कोमल करुणा भूल गये पाषाण हुये
दिल में सोये देव जगाने आया हूं
भावों के इस उजड़े मरुथल में फिर से
ग़ज़लों का इक बाग़ लगाने आया हूं
वाह सर जी खूब गीतिका कही बधाई
भावों के इस उजड़े मरुथल में फिर से
ग़ज़लों का इक बाग़ लगाने आया हूं,,,,,,,,लाजवाब पंक्तियाँ ,,,,आपकी अच्छी रचना पर आपको दिली बधाई आ.खुर्शीद जी |
आदरणीय खुर्शीद जी
लाजवाब i निशब्द करती रचना i आपको ढेरों बधाई i सादर i
bahut khoob. waaah waaah waaaah waaah bahut khoob
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