२११-२११-२११-२११-२११-२११
होली का कुछ और मज़ा था उस बस्ती में
जश्न नहीं था एक नशा था उस बस्ती में
दिल के जंगल में यादों के टेसू लहके
तेरा मेरा प्यार नया था उस बस्ती में
शहरों में क्या धूम मचेगी, होली पर वो
भांग घुटी थी रंग जमा था उस बस्ती में
चंग बजाते घर घर जाते रसियों के दल
हरदम दिल का द्वार खुला था उस बस्ती में
जोश युवाओं का भी ठंडा ठंडा है अब
बूढों का भी जोश युवा था उस बस्ती में
पापड़ गुझिये बेसन-चक्की ठंडाई भी
मनुहारों का मान बड़ा था उस बस्ती में
शोख़ गुलालों और अबीरों के वो बादल
रंगोली से चौक सजा था उस बस्ती में
सूख गया तन लेकिन अब तक मन गीला है
पिचकारी में नेह भरा था उस बस्ती में
रंग नहीं अब चढ़ता कोई मेरे जी पर
तूने ऐसा रंग दिया था उस बस्ती में
फ़ीका फ़ीका सूखा सूखा बीत गया लो
इस फागुन का चाव बड़ा था उस बस्ती में
हर होली पर “देसी” पीकर जोकर बनता
इस ‘बाबू’ का एक सखा था उस बस्ती में
ढप की थापों पर वो गींदड़ गेर-भवाई गींदड़ गेर-भवाई = लोक नृत्य
चेत कहाँ था फ़ाग चढ़ा था उस बस्ती में चेत = चेत्र मास \चेतना ,बोध
तुम ‘खुरशीद’ भले भूले अब उस बस्ती को
तुमने जीवन ख़ूब जिया था उस बस्ती में
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ सर ,हृदय से आभारी हूं कि आपने मेरे आग्रह पर मेरे बचपन की उस बस्ती की सैर की ....सच कहूँ तो इस ग़ज़ल को कहते समय मेरी आँखों से सावन झर रहा था |मेरा बचपन 'लेबर कॉलोनी ' में बीता था , मैं आज जोधपुर जैसे शहर में रेल्वे में इंजिनियर हूं ,मगर बचपन की बस्ती अभी भी वहीं की वहीं है |जो जीवन मैंने वहाँ जिया ....वो सुख नौ निधियां भी नहीं दे सकती है |सादर आभार आपका
कमाल ! बस कमाल !!
’उस बस्ती में’ की टेक पर जिस माहौल की संरचना हुई है, आदरणीय खुर्शीद भाई, वह अंदर तक नम कर गयी है. सिर धुनते हैं हम, हूक भरता है दिल ! क्या कहूँ समझमें नहीं आता !! कभी मिलना तो आपके हाथों की नरमी को महसूस करूँगा.
आपकी ग़ज़लों की तासीर ऐसी है कि उनसे उमगती धरती की भीनी-सोंधी महक का नशा छा जाता है और हम देर तक अनमनाये हुए पड़े रहते हैं.
दिल से शुभकामनाएँ
आदरणीय लक्ष्मण सर, आदरनिय दिनेश भाईसाहब, आप के स्नेह का ह्रदय तल से आभार |सादर |
आदरणीया प्रतिभा जी ,आदरणीय नदीम साहब ,ग़ज़ल आपको पुरानी स्म्रतियों की और लेकर गई ,यानि मेरी मनोदशा के आप सहभागी बनें हैं |आप दोनों का हृदयतल से आभार |सादर |
आदरणीय गिरिराज सर ,आदरणीय मिथिलेश जी ,आप जैसे ग़ज़ल प्रेमियों और उम्दा ग़ज़लकारों की दाद मिलना ,कलम को नया उत्साह मिलने जैसा है |स्नेह बनाये रखियेगा |सादर आभार |
आदरणीय जीतेन्दर जी ,महर्षि त्रिपाठी जी ,हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ |स्नेह बनाये रखियेगा |सादर |
आदरणीय नदीम साहब ,बहुत बहुत शुक्रिया |सादर |
आदरणीय गोपाल नारायण सर ,आप तो कबीर की उलटबांसी सी बात कर रहे हैं ,अभी तो मैं आप महानुभवों की स्नेह छाया में काफी कुछ सीख रहा हूँ |अनुज को अनुज ही रहने दीजिये सर ,इस तरह अग्रजों का आशीर्वाद मिलता रहता है |सादर अभिनंदन |
आदरणीय विजशंकर सर ,आदरणीय हरिप्रकाश जी ,आपका स्नेह मेरी ताकत है .मुझे इसी तरह स्नेह से सराबोर रखियेगा |सादर आभार |
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