इस होली पर रंग लगाने आ जायें
बचपन के कुछ यार पुराने आ जायें
होली-फागुन बरखा-सावन या जाड़ा
यादें तेरी ढूंढ बहाने आ जायें
दीवाने हो झूमा करते थे जिन पर
होठों पर वे मस्त तराने आ जायें
होली सुलगे भस्म न हो प्रहलाद कभी
सब नेकी का साथ निभाने आ जायें
सतरंगी थे इनके वादे कल यारों
लोग सियासी आज निभाने आ जायें
जीवन में हो पागलपन भी थोड़ा सा
दीवानों के संग सयाने आ जायें
रंग-ए-मुहब्बत घोल रखा है हमने तो
वादा अपना आप निभाने आ जायें
हाथों में मनमोहन के है पिचकारी
सखियाँ सारी रास रचाने आ जायें
धूप गुलाबी चाँदी जैसी जुन्हाई
फिर से वे दिन रात सुहाने आ जायें
वे टेसू के फूल शरारे जैसे फिर
उन होठों की याद दिलाने आ जायें
गाँवों का ‘खुरशीद’ रहे क्यूं तन धूसर
चाँद सितारे नूर सजाने आ जायें
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय खुर्शीद भाई,
होली की अलमस्ती में डूबी इस खुश-खुश ग़ज़ल केलिए बहुत-बहुत बधाई.
इन शेरों के लिए तो दिल बार-बार शुभ-शुभ कह रहा है.
जीवन में हो पागलपन भी थोड़ा सा
दीवानों के संग सयाने आ जायें
धूप गुलाबी चाँदी जैसी जुन्हाई
फिर से वे दिन रात सुहाने आ जायें
वे टेसू के फूल शरारे जैसे फिर
उन होठों की याद दिलाने आ जायें
हालाँकि आपकी इस ग़ज़ल पर विलम्ब से आ रहा हूँ लेकिन यहाँ आना अब भी पुलकित कर रहा है.
ढेर सारी मंगलकामनाएँ
आदरणीय खुर्शीद खैरादी साहब कमाल की रचना है ,हार्दिक बधाई आपको ! सादर
इस होली पर रंग लगाने आ जायें
बचपन के कुछ यार पुराने आ जायें...
होली सुलगे भस्म न हो प्रहलाद कभी
सब नेकी का साथ निभाने आ जायें....बहुत ही बढ़िया भाव ..शानदार !
वे टेसू के फूल शरारे जैसे फिर
उन होठों की याद दिलाने आ जायें--------------- bahut achchhee gajal I vaah vaah khursheed bhayee
उम्दा छंद रचना के लिए बधाई आपको | |
होली सुलगे भस्म न हो प्रहलाद कभी
सब नेकी का साथ निभाने आ जायें
धूप गुलाबी चाँदी जैसी जुन्हाई
फिर से वे दिन रात सुहाने आ जायें
गाँवों का ‘खुरशीद’ रहे क्यूं तन धूसर
चाँद सितारे नूर सजाने आ जायें
वाह आदरणीय बहुत बढ़िया ग़ज़ल
वाह बहुत सुंदर
होली सुलगे भस्म न हो प्रहलाद कभी
सब नेकी का साथ निभाने आ जायें .... बहुत सुंदर संदेश ...
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