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गीतिका ... ८+८+६ २२-२२-२२-२२-२२-२.....आ जायें

इस होली पर रंग लगाने आ जायें

बचपन के कुछ यार पुराने आ जायें

 

होली-फागुन बरखा-सावन या जाड़ा

यादें तेरी ढूंढ बहाने आ जायें

 

दीवाने हो झूमा करते थे जिन पर

होठों पर वे मस्त तराने आ जायें

 

होली सुलगे भस्म न हो प्रहलाद कभी

सब नेकी का साथ निभाने आ जायें

 

सतरंगी थे इनके वादे कल यारों

लोग सियासी आज निभाने आ जायें

 

जीवन में हो पागलपन भी थोड़ा सा

दीवानों के संग सयाने आ जायें

 

रंग-ए-मुहब्बत घोल रखा है हमने तो

वादा अपना आप निभाने आ जायें

 

हाथों में मनमोहन के है पिचकारी

सखियाँ सारी रास रचाने आ जायें

 

धूप गुलाबी चाँदी जैसी जुन्हाई

फिर से वे दिन रात सुहाने आ जायें

 

वे टेसू के फूल शरारे जैसे फिर

उन होठों की याद दिलाने आ जायें

 

गाँवों का ‘खुरशीद’ रहे क्यूं तन धूसर

चाँद सितारे नूर सजाने आ जायें   

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 12, 2015 at 12:14pm

आदरणीय खुर्शीद भाई,
होली की अलमस्ती में डूबी इस खुश-खुश ग़ज़ल केलिए बहुत-बहुत बधाई.
इन शेरों के लिए तो दिल बार-बार शुभ-शुभ कह रहा है.
 
जीवन में हो पागलपन भी थोड़ा सा
दीवानों के संग सयाने आ जायें

धूप गुलाबी चाँदी जैसी जुन्हाई
फिर से वे दिन रात सुहाने आ जायें

वे टेसू के फूल शरारे जैसे फिर
उन होठों की याद दिलाने आ जायें

हालाँकि आपकी इस ग़ज़ल पर विलम्ब से आ रहा हूँ लेकिन यहाँ आना अब भी पुलकित कर रहा है.
ढेर सारी मंगलकामनाएँ

Comment by Hari Prakash Dubey on March 5, 2015 at 9:45pm

आदरणीय खुर्शीद खैरादी साहब कमाल की  रचना है ,हार्दिक बधाई आपको ! सादर 

इस होली पर रंग लगाने आ जायें

बचपन के कुछ यार पुराने आ जायें... 

होली सुलगे भस्म न हो प्रहलाद कभी

सब नेकी का साथ निभाने आ जायें....बहुत ही बढ़िया भाव ..शानदार !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 5, 2015 at 9:12pm

वे टेसू के फूल शरारे जैसे फिर

उन होठों की याद दिलाने आ जायें--------------- bahut achchhee gajal  I vaah vaah khursheed bhayee

Comment by Shyam Narain Verma on March 5, 2015 at 10:58am
उम्दा छंद रचना के लिए बधाई आपको |
Comment by vandana on March 4, 2015 at 9:07pm

 

होली सुलगे भस्म न हो प्रहलाद कभी

सब नेकी का साथ निभाने आ जायें

 

धूप गुलाबी चाँदी जैसी जुन्हाई

फिर से वे दिन रात सुहाने आ जायें

  

गाँवों का ‘खुरशीद’ रहे क्यूं तन धूसर

चाँद सितारे नूर सजाने आ जायें   

वाह आदरणीय बहुत बढ़िया ग़ज़ल 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 4, 2015 at 9:02pm
धूप गुलाबी चाँदी जैसी जुन्हाई
फिर से वे दिन रात सुहाने आ जायें
बहुत खूब, सुन्दर. बहुत बहुत बधाई , आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी , सादर।
Comment by Neeraj Neer on March 4, 2015 at 7:50pm

वाह बहुत सुंदर 

होली सुलगे भस्म न हो प्रहलाद कभी

सब नेकी का साथ निभाने आ जायें .... बहुत सुंदर संदेश ... 

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