बरगद पीपल पनघट छूटे
बालसखा सब नटखट छूटे
गोपालों की शोख़ ठिठोली
चौपालों के जमघट छूटे
बालू के वो दुर्ग महल सब
तालाबों के वो तट छूटे
झालर संझा वो चरणामृत
मंदिर के चौड़े पट छूटे
मॉलों में क्या कूके कोयल
अमराई के झुरमुट छूटे
धूम कहाँ वो बचपन वाली
टोली के सब मर्कट छूटे
हमसे छूटा गाँव हमारा
जीने का अब जीवट छूटे
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय खुर्शीद भाई , हमेशा की तरह एक और बेहतरीन ग़ज़ल पढवाई आपने । मै भी अपने गाँव पहुँच गया ! आपको हृदय से बधाइयाँ और शुभकामनायें ॥
हमसे छूटा गाँव हमारा
जीने का अब जीवट छूटे..................sir ji kammal ......
आदरणीय खुर्शीद सर बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है ... छोटी बह्र में कमाल हुआ है, आपकी ग़ज़ल से गुजरते हुए कितना कुछ सीखने मिलता है , बहुत बहुत आभार इस सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए ... सादर
आदरणीय शिज्जु सर ,आदरणीय उमेश जी , मैं आपकी ग़ज़लों का फैन हूं ,आपका मेरी ग़ज़ल पर आना मुझे प्रोत्साहित कर रहा है |सादर आभार |
आदरणीय लक्ष्मण साहब , आदरणीय सोमेश जी ,आदरणीय मोहन सेठी सर ,आप सभी विद्जनों का हृदय से आभारी हूं |सादर
आदरणीय महरिशी त्रिपाठी जी ,आदरणीय श्याम मथपल जी ,हृदय से आभार ,मुहब्बत बनाये रखियेगा |सादर
आदरणीया निधि जी , आदरणीय नीरज कुमार जी ,बहुत बहुत आभारी हूं ,स्नेह बनाए रखियेगा |सादर
आदरणीय जान गोरखपुरी साहब ,आदरणीय श्याम नारायण साहब , बहुत बहुत आभार आपको गीतिका पसंद आयी |सादर
आदरणीय हरिप्रकाश जी ,आदरणीय विजयशंकर जी ,आपके स्नेह का हृदय से आभारी हूं |सादर आभार |
हमसे छूटा गाँव हमारा
जीने का अब जीवट छूटे
ये वेदना हर उस व्यक्ति को जोड़ती है जिसके जीवन का ये सत्य है |रचना पर बधाई |
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