ताप घृणा का शीतल करदे सीला माँ
इस ज्वाला को तू जल करदे सीला माँ
इस मन में मद दावानल सा फैला है
करुणा-नद की कलकल करदे सीला माँ
सूख गया है नेह ह्रदय का ईर्ष्या से
इस काँटे को कोंपल करदे सीला माँ
प्यास लबों पर अंगारे सी दहके है
हर पत्थर को छागल करदे सीला माँ
सूरज सर पर तपता है दोपहरी में
सर पर अपना करतल करदे सीला माँ
दूध दही हो जाता है शीतलता से
भाप जमा कर बादल करदे सीला माँ
गम की धूप सताती है फिर बेटों को
पग पग पर फिर पीपल करदे सीला माँ
खंडित को भी मंडित कर देती है तू
कंकर को तू कोमल करदे सीला माँ
क्रोध दया को छाँव नहीं देगा मन में
इस सहरा को जंगल करदे सीला माँ
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ० खैरादी जी
लाजवाब . बेहतरीन . निशब्द .
क्या बात है ! आदरणीय खुर्शीद भाई , ग़ज़ल भी भजन भी और एक दिल से निकली प्रार्थाना भी , सब का आनन्द एक साथ मिल गया । हार्दिक बधाइयाँ ।
लाजवाब, उम्दा ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
अनुपम अतुलनीय
आपकी कलम का एक और कमाल
आदरणीय खुर्शीद सर इस बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
Aadarniya Khurseed Khairadi Ji,
Shitala Mata ko samarpit bhavpurn rachna ke liye dili mubarkbad.
आदरणीय श्याम जी ,आ.उमेश जी,आ.महर्षि जी ,आदरणीय हरिप्रकाश जी ,आदरणीय विजयशंकर जी .आ.सोमेश जी ,आ. नीरज सर ,आ. जान साहब ,आदरणीया राजेश दीदी ,आप सभी ने ,राजस्थान में मनाये जाने वाले शीतला अष्टमी पर्व को समर्पित मेरे इस अनगढ़ प्रयास को जो प्यार दिया उसके लिए हृदय से आभारी हूं |इस दिन ठंडा और बासी भोजन खाया जाता है ,यह वही पूजनीय शीतला माता है ,जो लोकमान्यता के अनुसार चेचक रोग से बच्चों को बचाती है तथा कई जगह छोटी माता के रूप में पूजी जाती है |
केक्टस को तू उत्पल करदे सीला माँ
बासी को तू निर्मल करदे सीला माँ
जय जय शीतला माँ और जय जय माँ के पावन चरणों में इस रचना को निवेदित करने वाले खुर्शीद भाई जी |
इस भावपूर्ण गजल पर दाद कुबुलें आ. khursheed khairadi जी |.
बहुत ही सुंदर ... माँ प्रकृति के प्रति इतना अनुराग एवं श्रद्धा भाव ही इतनी सुंदर रचना का कारण है .... हार्दिक बधाई
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