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कमल-नैन या कंज-लोचन है वह  

कहते है शोक-विमोचन है वह  

पद्म -पांखुरी जैसे है अधर

रक्त-नलिन से कपोल है सुघर

 

नील-नीरज सा मोहक वदन

वपुष नीलोत्पल सुषमा-सदन

है दीर्घ बाहे अम्बुज की नाल

पाद-पुष्ट मानो है पंकज मृणाल

 

हाथ की हथेली है राजीव-दल

विकसित है कर में श्याम-शतदल

चरण-सरोज की है महिमा अनूप

सांवले सरोरुह सा खिला-खिला रूप

 

रहता प्रफुल्ल जिसका अंतस-कमल  

नीलोफर रूप जिसका विमल-अमल

हा ! अब्ज का यह ढेर कौन ?

बोल ! बोल ! बोल ! मेरे मुखर मौन !

 

राम हैं  या कृष्ण हैं  महज अंदाज से

या फिर तुलसी-सूर-कविता के ब्याज से

(मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 5, 2015 at 7:43pm

हरि प्रकाश जी

आपका आभारी हूँ i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 5, 2015 at 7:42pm

श्याम नारायन  वर्मा जी

सादर आभार i

Comment by Hari Prakash Dubey on January 5, 2015 at 6:13pm

रहता प्रफुल्ल जिसका अंतस-कमल 

नीलोफर रूप जिसका विमल-अमल

हा ! अब्ज का यह ढेर कौन ?

बोल ! बोल ! बोल ! मेरे मुखर मौन ……………सुंदर कविता ,खूबसूरत शब्दों में पिरोयी हुई । आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर  श्ब्दों का चयन बहुत अच्छा है । अभिनंदन आपका … सादर!

 

Comment by Shyam Narain Verma on January 5, 2015 at 10:25am

सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई !

सादर ..........

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