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मिट्टी के खिलौने

मन बच्चा है बहलाने को 

मिट्टी के खिलौने बनायें 

किसी के सिर पर रखकर चोटी 

किसी के माथे तिलक लगायें 

किसी के मुँह पर लगा के दाढ़ी

किसी को सुन्दर साड़ी पहनायें 

किसी के सिर पर रखकर टोपी 

किसी के सिर पगड़ी पहनायें 

 

काश मानव हों मिट्टी के खिलौने 

 

मौला, पंडित ,फादर ,भाई 

गूँथ इन्हें सबको मिलायें

मिली जुली इस मिट्टी से फिर

नए नए आकार बनायें 

दाढ़ी किसी की चोटी बन जाये 

चोटी में दाढ़ी छुपायें  

टोपी किसी की पगड़ी बन जाये 

पगड़ी में टोपी छुपायें 

किसमें कितना कौन छुपा है 

कौन बताये? कौन बताये ?

भेदभाव सारे मिट जायें 

आओ सच्चा मानव बनायें 

इंसानों में इंसानियत जगायें 

...................................

मौलिक एवं अप्रकाशित ..

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Comment by मिथिलेश वामनकर on February 17, 2015 at 4:22pm

आदरणीया सरिता जी सुन्दर भावाभिव्यक्ति और नई सी कल्पना पर रचित इस सुन्दर कविता के लिए हार्दिक  बधाई....

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on February 17, 2015 at 4:18pm

आओ सच्चा मानव बनायें 

इंसानों में इंसानियत जगायें ....

आदरणीया सरिता जी सुन्दर और भावनात्मक कल्पना, बहुत बहुत बधाई!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 17, 2015 at 3:47pm

मानव भी मिट्टी  के खिलौने हैं बस इनका कुम्भकार कोई और है i सादर i

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 17, 2015 at 11:35am
कल्पनाओं में भाव बहुत सुन्दर है, आदरणीय सरिता भाटिया जी, बधाई, सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on February 17, 2015 at 11:12am

आदरणीया  सरिता जी बहुत ही सुन्दर कल्पना , भावनात्मक प्रस्तुति है बहुत बहुत बधाई आपको ! सादर 

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