For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्यों कहते हो कुछ नहीं हो सकता है--- डॉo विजय शंकर

तुम बता रहे हो ,
मैं जानता हूँ , कुछ नहीं हो सकता ,
सदियों से झेलते आ रहे हैं ,
कुछ हुआ , अचानक अब क्या हो जाएगा।
पर , आओ हम कहें , तुम कहो , सब कहें कि
कुछ नहीं हो सकता , तय तो कर लें कि
क्या कुछ हो नहीं सकता।
वो जो पुरोधा बन के बैठे हैं ,
वह भी यही कह रहें हैं ,
वैसे वो जो चाहतें हैं , वह सब हो जाता है,
भाव बढ़ जाते हैं , मंहगाई बढ़ जाती है ,
उनकीं तारीफ़ , यशोगान हो जाता है ,
बस यही नहीं हो पाता है ,
हम ही दुनिया में अनूठे हैं
जो विपत्तियों आपदाओं से
लड़ते नहीं , समझौता करते हैं ,
उन्हें नियति बता देते हैं , मान लेते हैं ,
नीयत शून्यता कहें इसे या सामर्थ्य - अभाव ,
एक क्षीण , अन्यथा लाचार, व्यवस्था को झकझोर देता है ,
हम कहते हैं , कुछ हो नहीं सकता।
स्वयं सुरक्षा करो, घर में रहो, सुरक्षित रहो ,
नहीं कोई अप्राकृतिक न्याय कर जाएगा ,
वीभत्स दंड दे जाएगा , क्या करोगे ,
क्योंकि , कुछ हो नहीं सकता ।
सोचो , क्या कर सकते हो , कुछ कर सकते हो ,
या सिर्फ बैठे बैठे किसी राम या कृष्ण की प्रतीक्षा करते हो,
वो आएंगे , फिर एक रावण का संहार होगा , कंस मिटेगा ,
मानते हो , फिर क्यों कहते हो , कुछ नहीं हो सकता है।

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

Views: 608

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 9, 2015 at 10:54pm
सुधीजन सोंचते सब एक सा ही हैं , बस कुछ कह लेते हैं , कुछ कह देते हैं , कुछ बिन कुछ कहे ही रह लेते हैं , आपकी चेतना और सकारात्मक सोंच को नमन, आपकी विवेचना के लिए आभार, धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 9, 2015 at 10:50pm
आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी, आपके गाम्भीर्य एवं संवेदन शीलता को नमन , सार्थक विवेचना के लिए आभार एवं धन्यवाद। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 9, 2015 at 10:48pm
आदरणीय नीरज कुमार नीर जी, आपकी संवेदन शीलता को नमन , सार्थक विवेचना के लिए आभार एवं धन्यवाद, सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on March 9, 2015 at 10:35pm

आदरणीय विजय सर , बहुत ही गहन चिंतन ,सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई आपको ! सादर 

तपते सूरज से

पिघल रही है बर्फ

बढ़ रहा है जलस्तर

तुम फिर डूबोगे

किसी मनु को खोजोगे

वह नहीं आयेगा

फिर कौन तुम्हे बचायेगा

प्रलय हो जायेगी

इस बार तुम्हें बचाने

कोई नाव नहीं आएगी.....इसी मंच पर लिखा था , ऐसे ही विचार कभी कभी मेरे मन मैं भी आते है ! अभिनन्दन 

Comment by maharshi tripathi on March 9, 2015 at 10:28pm

कुछ करने को प्रेरित इस कविता पर आपको बधाई आ.विजयशंकर जी |

Comment by Neeraj Neer on March 9, 2015 at 10:19pm

सुंदर सामयिक एवं अर्थपूर्ण ... 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
15 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service