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क्यों कहते हो कुछ नहीं हो सकता है--- डॉo विजय शंकर

तुम बता रहे हो ,
मैं जानता हूँ , कुछ नहीं हो सकता ,
सदियों से झेलते आ रहे हैं ,
कुछ हुआ , अचानक अब क्या हो जाएगा।
पर , आओ हम कहें , तुम कहो , सब कहें कि
कुछ नहीं हो सकता , तय तो कर लें कि
क्या कुछ हो नहीं सकता।
वो जो पुरोधा बन के बैठे हैं ,
वह भी यही कह रहें हैं ,
वैसे वो जो चाहतें हैं , वह सब हो जाता है,
भाव बढ़ जाते हैं , मंहगाई बढ़ जाती है ,
उनकीं तारीफ़ , यशोगान हो जाता है ,
बस यही नहीं हो पाता है ,
हम ही दुनिया में अनूठे हैं
जो विपत्तियों आपदाओं से
लड़ते नहीं , समझौता करते हैं ,
उन्हें नियति बता देते हैं , मान लेते हैं ,
नीयत शून्यता कहें इसे या सामर्थ्य - अभाव ,
एक क्षीण , अन्यथा लाचार, व्यवस्था को झकझोर देता है ,
हम कहते हैं , कुछ हो नहीं सकता।
स्वयं सुरक्षा करो, घर में रहो, सुरक्षित रहो ,
नहीं कोई अप्राकृतिक न्याय कर जाएगा ,
वीभत्स दंड दे जाएगा , क्या करोगे ,
क्योंकि , कुछ हो नहीं सकता ।
सोचो , क्या कर सकते हो , कुछ कर सकते हो ,
या सिर्फ बैठे बैठे किसी राम या कृष्ण की प्रतीक्षा करते हो,
वो आएंगे , फिर एक रावण का संहार होगा , कंस मिटेगा ,
मानते हो , फिर क्यों कहते हो , कुछ नहीं हो सकता है।

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

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Comment by Dr. Vijai Shanker on March 9, 2015 at 10:54pm
सुधीजन सोंचते सब एक सा ही हैं , बस कुछ कह लेते हैं , कुछ कह देते हैं , कुछ बिन कुछ कहे ही रह लेते हैं , आपकी चेतना और सकारात्मक सोंच को नमन, आपकी विवेचना के लिए आभार, धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 9, 2015 at 10:50pm
आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी, आपके गाम्भीर्य एवं संवेदन शीलता को नमन , सार्थक विवेचना के लिए आभार एवं धन्यवाद। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 9, 2015 at 10:48pm
आदरणीय नीरज कुमार नीर जी, आपकी संवेदन शीलता को नमन , सार्थक विवेचना के लिए आभार एवं धन्यवाद, सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on March 9, 2015 at 10:35pm

आदरणीय विजय सर , बहुत ही गहन चिंतन ,सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई आपको ! सादर 

तपते सूरज से

पिघल रही है बर्फ

बढ़ रहा है जलस्तर

तुम फिर डूबोगे

किसी मनु को खोजोगे

वह नहीं आयेगा

फिर कौन तुम्हे बचायेगा

प्रलय हो जायेगी

इस बार तुम्हें बचाने

कोई नाव नहीं आएगी.....इसी मंच पर लिखा था , ऐसे ही विचार कभी कभी मेरे मन मैं भी आते है ! अभिनन्दन 

Comment by maharshi tripathi on March 9, 2015 at 10:28pm

कुछ करने को प्रेरित इस कविता पर आपको बधाई आ.विजयशंकर जी |

Comment by Neeraj Neer on March 9, 2015 at 10:19pm

सुंदर सामयिक एवं अर्थपूर्ण ... 

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