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लाजवाब अभिव्यक्ति हुई है आदरणीय विजय भाई , कुछ सोचने के लिये विवश करती । हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय डॉक्टर विजय शंकर सर , बहुत ही यथार्थवादी रचना है ,
आंसू ' मदर इण्डिया ' के अभी तक
थमें नहीं , कितने दशक गये बीत, और
' इण्डियाज डॉटर ' एक प्रश्न बन गई है .......बहुत सुन्दर ! बधाई सर ,सादर !
आ. विजय शकर जी,
aapki rachna hamaari soch par gahari chot hai. Kuch Pradarshan-lekh aadi se ham apna kartvya nibhte hai. Punha wahi dharra chalta hai. Bahut aabhar-- badhai.
बात यह नहीं है कि क्या घटना है. बात यह है कि उसके मायने क्या हैं ? किसतरह के लोगों की सोच की बात हो रही है ? किस मनस और कैसी मानसिकता के लोगों से हम क्या आशा कर रहे हैं ? उनकी शिक्षा क्या है ?
और् हम ऐसों के बीच किस समाज की चाहना रखते हैं ?
इस पर सोचना अधिक आवश्यक है.
वैचारिक प्रस्तुति पर शुभकामनाएँ
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