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एक नए गंभीर मुद्दे को केन्द्रित कर लिखी गई कविता सोचने पर विवश करती है बहुत खूब हार्दिक बधाई आदरणीय
आ० विजय सर
इन्टरनेट के सौजन्य से पूरी डाक्यूमेंटरी देखी i जिस घटना न देश में जागृति उत्पन्न की वह सर्वोच्च न्यायालय रूपी अधर में लटकी है i इस देश का क्या हो सकता है i iआदरणीय सर i
देवता कितने संख्य हैं,
नेता कितने असंख्य हैं ,
हम सर्वत्र नतमस्तक हैं ,
पर कितने नगणय हैं ,.....दिमाग को सोचने पर मजबूर करती ,बहुत सुन्दर रचना आदरणीय डॉक्टर विजय शंकर सर , हार्दिक बधाई ! सादर
पहले आपकी रचना ,फिर आपका प्रतिउत्तर पढ़ा. दोनों सराहनीय है आदरणीय डा.विजय जी. इस गहन लेखन पर आपको हार्दिक बधाई प्रेषित करता हूँ. सादर!
आ० विजय सर
कौन है इंडियाज डाटर i यह तो मुझे नही पता i चलो मिलकर खोजते हैं i सादर i शुभ होली i
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