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2122- 2122- 212

ख़्वाब से डरने लगा हूँ इन दिनों

नींद से मैं भागता हूँ इन दिनों

 

धड़कनें हैं तेज़ राहें पुरख़तर

मैं सँभलकर चल रहा हूँ इन दिनों

 

वुसअते शब बेबसी तन्हाइयाँ

इन अज़ाबों से घिरा हूँ इन दिनों

 

मुझपे भारी है हर इक लम्हा बहुत

फिक्र की तह में दबा हूँ इन दिनों

 

आइना हटकर परे मुझसे कहे

पत्थरों सा हो गया हूँ इन दिनों

 

कोई बतलाये मुझे मैं कौन हूँ

पहले क्या था और क्या हूँ इन दिनों

 

बदहवासी बेख़याली में “शकूर”

राहे फ़र्दा ढूँढता हूँ इन दिनों

 

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on March 22, 2015 at 8:31am

आदरणीय मिथिलेश जी रचना आपकी नज़रों से होकर ग़ुज़री यही बहुत है, कई बार निजी व्यस्तता के कारण प्रतिक्रिया देना संभव नहीं हो पाता, आपका हार्दिक आभार रचना की सराहना के लिये।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 19, 2015 at 9:17pm

आदरणीय शिज्जु भाई जी ये ग़ज़ल पहले भी पढ़ी थी लेकिन कमेन्ट नहीं दे पाया था.

ग़ज़ल उम्दा और बेहतरीन हुई है शेर दर शेर दिल से दाद हाज़िर है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 19, 2015 at 8:18pm

आदरणीय खुर्शीद जी नवाज़िशों के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया  

Comment by khursheed khairadi on March 14, 2015 at 9:18am

धड़कनें हैं तेज़ राहें पुरख़तर

मैं सँभलकर चल रहा हूँ इन दिनों

 

वुसअते शब बेबसी तन्हाइयाँ

इन अज़ाबों से घिरा हूँ इन दिनों

 आदरणीय शिज्जु  सर ,उम्दा ग़ज़ल हुई है ,ढेरों दाद कबूल फरमावें |इस शेर पर दिलोजान कुर्बान 

आइना हटकर परे मुझसे कहे

पत्थरों सा हो गया हूँ इन दिनों

 सादर अभिनन्दन |

Comment by maharshi tripathi on March 13, 2015 at 10:12pm

जानकारी देने हेतु शुक्रिया आ.शिज्जु "शकूर" जी |


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Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2015 at 9:09am

आदरणीय  maharshi tripathi ji आपका तहेदिल से शुक्रिया, 

वुसअत- विस्तार, वुसअते शब- रात की व्यापकता
अजाब- मुसीबत या प्रलय, पुरखतर- खतरों से भरा हुआ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2015 at 9:07am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2015 at 9:06am

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2015 at 9:05am

आदरणीय जान गोरखपुरीजी आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2015 at 9:04am

आदरणीय धर्मेन्द्र जी आपका तहेदिल से शुक्रिया

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