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गंगा माँ की गोद में,बसा कानपुर धाम
सरसैया के घाट पर, उगती सहर तमाम  ॥

 

महा आरती मात की, कर लो हृदय लगाय

  कट जायें संकट सभी ,सुंदर सरल उपाय ॥

 

हिमगिर के उर से बही,पसरी वसुधा गोद

लहराती वो चल पड़ी,भरती मन आमोद 

 

मोक्षदायनी याद में , कहाँ भागीरथ आज

उनका तप बल याद कर,सफल बना लो काज ॥

 

गंगा गीता गाय को , प्यार करें भगवान
मानव इसको भूल कर,करता बस अभिमान ॥

 

चारु चंद्र जब निकलता,माँ गंगा के तीर
रजत रश्मियों से खिला, निर्मल पावन नीर॥ 

मौलिक व अप्रकाशित 

कल्पना मिश्रा बाजपेई 

Views: 4532

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Comment by kalpna mishra bajpai on March 12, 2015 at 11:22pm

आ० maharshi tripathi जी आभार आप का /सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 12, 2015 at 9:41pm
दोहों की बहुत सुन्दर प्रस्तुति, आदरणीय सुश्री कल्पना मिश्रा बाजपेयी जी , बधाई , सादर।
Comment by Shyam Mathpal on March 12, 2015 at 8:42pm

Aadarniya Kalpana Mishra Bajpai Ji,

Shabdon Ki motiyon Ko kafi acchhe tarike se piroya hai aapne . Ganga wa Kanpur ka gungan ati sundar. Hardik Badhai.

Comment by maharshi tripathi on March 12, 2015 at 8:35pm

सुन्दर दोहों पर आपको बधाई आ. kalpna mishra जी |

Comment by kalpna mishra bajpai on March 12, 2015 at 7:58pm

आ० krishna mishra 'jaan'gorakhpuri  जी आभार आप का /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on March 12, 2015 at 7:57pm

आदरणीय  Shyam Narain Verma सर आभार आप का /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on March 12, 2015 at 7:57pm

आदरणीय  Hari Prakash Dubey जी आप का आभार /सादर ..... मैं तो सिर्फ सीख रही हूँ 

Comment by Shyam Narain Verma on March 12, 2015 at 4:25pm
बहुत खूब ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 12, 2015 at 4:06pm

गंगा गीता गऔ को , प्यार करें भगवान

मानव इसको भूल कर,करता बस अभिमान ॥

सुंदर दोहे आदरणीया!हार्दिक बधाईयाँ प्रेषित है!!

Comment by Hari Prakash Dubey on March 12, 2015 at 3:38pm

आदरणीया कल्पना मिश्रा जी,आपकी रचनाओं से इस विधा का सुन्दर ज्ञान मिल रहा है , इस सुंदर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई ! सादर

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