पुस्तक गुण की खान है,सीखें रखती गोय
जो उसका प्रेमी बना ,जग में जय जय होय॥
सखी भरी है ज्ञान से,उर में रखती भाव
पढ़-पढ़ के हासिल करो,रहे न ज्ञान अभाव॥
इस पूरे संसार की,जो रखती है थाह
दुनियाँ में कैसे मिली,किसको कहाँ पनाह॥
वर्ण-वर्ण मिल बन गई,सुंदर सुखद किताब
मनसा वाचा कर्मणा ,रख लो खूब हिसाब ॥
गुणी जनों ने बैठ कर,लिखे सुघर मंतव्य
रुचि जिसकी जिसमें रहे, खोजो वो गंतव्य॥
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना मिश्रा बाजपेई
Comment
आ० कल्पना बहन बहुत सुन्दर दोहे हुए है हार्दिक बधाई .
आदरणीया कल्पना जी ,सुन्दर दोहावली है ,सादर अभिनन्दन |
आप सभी आदरणीय मित्रों की आभारी हूँ /सादर
आ० डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर आप के मार्ग दर्शन के लिए आभारी हूँ /सादर
जो उसका प्रेमी बना ,जग में जय जय होय॥ आदरणीय कल्पना मिश्रा जी सत्य, सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाइयाँ!! कबीर जी के बारे में आपका क्या ख्याल है?? मसि कागज गयो नहि हाथ!
बहुत सुन्दर दोहे ,,,,
सखी भरी है ज्ञान से,उर में रखती भाव
पढ़-पढ़ के हासिल करो,रहे न ज्ञान अभाव॥,,,,सही कहा आपने ,,हार्दिक बधाई आपको आ.कल्पना मिश्रा जी |
आपकी इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई |
आ० कल्पना जी
पुस्तक गुण की खान है
पढ़-पढ़ कर हासिल करो,
वह रखती है थाह ,
कोई कैसा हो यहाँ सबको मिले पनाह
सब का करे हिसाब ॥
अभिरुचि के अनुरूप ही सबका है गंतव्य
सादर i
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