नारी अब चेतन हुई ,बदला उसका रूप
हर मौसम हर समय वो ,लेती नए स्वरूप
लेती नए स्वरूप ,आसमां पर छा जाती
सहती हर संघर्ष ,दिलेरी खूब दिखाती
स्वाभिमान को जान,स्वयं पर जाती वारी
खूब कमाती मान ,आज कीशिक्षित नारी ॥
अप्रकाशित व मौलिक
कल्पना मिश्रा बाजपेई
Comment
आदरणीय कल्पना मिश्रा बाजपेई जी , कुछ परिवर्तन के साथ रचना और निखर उठी है ,बधाई ! सादर
आभार rajesh kumari दीदी /सादर
स्वाभिमान को जान ,करने से सही हो जाएगा ,बाकी गुणी जन बता चुके हैं
आप प्रयासरत रहें धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा इन सुन्दर भावों के लिए हार्दिक बधाई प्रिय कल्पना जी
आप सभी माननीय गुणी जनों का हार्दिक आभार /सादर
आदरणीया अच्छी कुंडलिया रची है आपने , बधाइयाँ ॥
आदरणीया कल्पना मिश्रा जी बहुत ही सकारात्मक सुन्दर रचना है ,बधाई आपको ! सादर
आप सभी सुधि जनों का बहुत बहुत आभार। आप सभी ऐसे ही मार्ग दर्शन की जरूरत है मुझे हार्दिक शुक्रिया /सादर
आ. गोपाल नारायनजी की बातों का संज्ञान लेते हुए अभ्यासरत रहें.
साथ ही इस प्रस्तुति (कुण्डलिया छन्द) के दोहा वाले भाग में भी ’समय’ को ’वक्त’ कीजिये या ऐसा ही कोई बदलाव करें. देखियेहा, दोहा वाले भाग की भी गेयता सुधरी दिखेगी. ऐसा क्यों होगा ?
सादर
इस सुन्दर प्रस्तुति पर आपको बधाई आ.कल्पना मिश्रा जी |
Aadarniya Kalpana Ji,
Aadhunik nari ke badle swaroop ko chitran karne wali rachna ke liye badhai.
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