गंगा माँ की गोद में,बसा कानपुर धाम
सरसैया के घाट पर, उगती सहर तमाम ॥
महा आरती मात की, कर लो हृदय लगाय
कट जायें संकट सभी ,सुंदर सरल उपाय ॥
हिमगिर के उर से बही,पसरी वसुधा गोद
लहराती वो चल पड़ी,भरती मन आमोद ॥
मोक्षदायनी याद में , कहाँ भागीरथ आज
उनका तप बल याद कर,सफल बना लो काज ॥
गंगा गीता गाय को , प्यार करें भगवान
मानव इसको भूल कर,करता बस अभिमान ॥
चारु चंद्र जब निकलता,माँ गंगा के तीर
रजत रश्मियों से खिला, निर्मल पावन नीर॥
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना मिश्रा बाजपेई
Comment
आ० गिरिराज भंडारी सर आप का आभार /सादर आपने सही कहा है मैं तो बस सीख रही हूँ आप सभी के मार्गदर्शन की आकांक्षी हूँ
आ0 मिथिलेश वामनकर जी आप का आभार
आदरणीया कल्पना जी , सभी दोहे बहुत सुन्दर हुये हैं , हार्दिक बधाइयाँ ।
संकट सारे कटेंगे --- को अगर-- कट जायें संकट सभी -- करें को गेयता ठीक लग रही है , सोच के देखियेगा ।
आदरणीया कल्पना जी सुन्दर दोहावली के लिए हार्दिक बधाई
इन में गेयता थोड़ा भंग हुई है -
संकट सारे कटेंगे
चारु चंद्र जब निकलता
आ0 khursheed khairadi जी आभार आप का /सादर
आ0 लक्ष्मण रामानुज लडीवाला सर आप के सुझाव के लिये आभारी हूँ /सादर
सुंदर प्रयास के लिए बधाई आद कल्पना मिश्रा बाजपेयी जी | लय भी साधने का प्रयास करे -
महा आरती मात की, कर लो हृदय लगाय
संकट सारे कटेंगे ,सुंदर सरल उपाय ॥ --- विषम चरण का अंत १२ से ही करे | कटेंगे में 122 है | " संकट सारे कट सके" किया जा सकता है | सादर
आदरणीया कल्पना जी सुन्दर दोहावली है |सादर अभिनन्दन |
आ० Dr. Vijai Shanker जी आभार आप का /सादर
आ० Shyam Mathpal जी आभार आप का /सादर
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