मन भावन पैगाम सब ,रक्खे बड़े सम्हाल
आते जब भी सामने,कहते सारा हाल ॥
स्नेह पगे जो शब्द हैं,करते अब मनुहार
इक-इक पाती प्रेम की,कहती बात हजार ॥
आखर में जब तुम दिखो,भर आती है लाज
आवेदन ये प्रेम का ,भर जाते है आज ॥
बिना कहे सब बोलती,हृदय की ये बात
आमंत्रण देती रहीं ,सपनों की बारात ॥
पाती में मिलते रहे ,सूखे सुमन गुलाब
मन मंदिर ले बाचती, खुशबू भरी किताब॥
आता देखूँ डाकिया ,खिलें खुशी के फूल
बंद लिफाफा प्रेम का,बुनता नैन दुकूल ॥
भावों भरे जो शब्द हैं ,करते है संवाद
देते हैं अब भी मुझे,पिया तुम्हारी याद ॥
साथ तुम्हारे पालकी,आई थी जब गाँव
पहनी थी रंग चूड़ियाँ ,महबर लागी पाँव ॥
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना मिश्रा बाजपेई
Comment
मैं आभारी हूँ आप सभी विशिष्ट और वरिष्ठ जनों की /सादर
अदरणीय Saurabh Pandey जी आप बिल्कुल सही कह रहे है मैं कोशिश करूंगी सुधार की । बहुत आभार
आदरणीया कल्पनाजी, इस दोहा प्रयास पर शुभकामनाएँ.
प्रस्तुतियों पर थोड़ा और समय दिया करें तो शिल्प और संप्रेषणीयता दोनों से न्याय होगा.
हार्दिक शुभेच्छाएँ
kya kahne waaah waaah waaah
पाती में मिलते रहे ,सूखे सुमन गुलाब
मन मंदिर ले बाचती, खुशबू भरी किताब॥
भावपूर्ण दोहे ....बधाई
आप सभी विशिष्ट आदरणीय जनों का हार्दिक हार्दिक आभार /सादर
आदरणीया कल्पना मिश्रा बाजपेई जी ,बहुत सुन्दर दोहावली है ,बधाई आपको ! सादर
Aadarniya Kalpna Mishra Bajpai Ji,
Sangeet ki tarah har pankti .... bahut sundar.. sundar bhaw .... Badhai .
इस भावपूर्ण, हृदयस्पर्शी दोहों पर हार्दिक बधाई आ.kalpna mishra जी |
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