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ग़ज़ल-- मैं ही फ़क़त नादान हूँ...... (मिथिलेश वामनकर)

2212---2212---2212---2212

 

देखो मुझे फिर ये कहो- क्या आज भी इंसान हूँ

क्यों इस तरह जतला रहें मैं कब कोई भगवान हूँ

 

ईमान का ऐलान हूँ तूफ़ान का फरमान हूँ

बरसों दबा के तू जिसे बैठा वही अरमान हूँ

 

दो पंछियों को पेड़ पर बैठे हुए देखा मगर

हँसते नहीं रोते नहीं ये देखकर हैरान हूँ

 

इक शख्स जो भीतर मेरे बस मौन सा बैठा हुआ

उस शख्स के किरदार से यारों बहुत हलकान हूँ

 

हर आदमी कहता यही पाया गया है आजकल

मौका नहीं तो मैं ख़ुदा मौका मिला शैतान हूँ

 

अब छोडिये उस बात को, बातें बढ़े क्या फायदा

माना चलो फाजिल तुम्ही मैं ही फ़क़त नादान हूँ

 

बस घर मेरा ताउम्र ही इस जिस्म पर तारी रहा

दीवार दर मैं था कभी, अब तो फ़क़त दालान हूँ  

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 25, 2015 at 5:43pm

दो पंछियों को पेड़ पर बैठे हुए देखा मगर

हँसते नहीं रोते नहीं ये देखकर हैरान हूँ...एक डा ल पर तोता बोले एक दाल पर मैना ..दूर होकर भी प्यार है पास होकर भी दूर ..दुखद है ..समाज का चित्रं करता शानदार शेर ...

हर आदमी कहता यही पाया गया है आजकल

मौका नहीं तो मैं ख़ुदा मौका मिला शैतान हूँ...बिलकुल सही कहा है 

अब छोडिये उस बात को, बातें बढ़े क्या फायदा

माना चलो फाजिल तुम्ही मैं ही फ़क़त नादान हूँ...बहुत बढ़िया जंग क्या मसअलों  का हल देंगी 

आदरणीय मिथिलेश जी इस कामयाब ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधायी सादर 

Comment by Sushil Sarna on March 25, 2015 at 5:12pm

अब छोडिये उस बात को, बातें बढ़े क्या फायदा
माना चलो फाजिल तुम्ही मैं ही फ़क़त नादान हूँ

बस घर मेरा ताउम्र ही इस जिस्म पर तारी रहा
दीवार दर मैं था कभी, अब तो फ़क़त दालान हूँ

वाह आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी वाह .... खूबसूरत भावों से सजी इस खूबसूरत ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 25, 2015 at 12:37pm

अ० वामनकर जी

बहुत सुन्दर लिखा आपने .

अब छोडिये उस बात को, बातें बढ़े क्या फायदा

माना चलो फाजिल तुम्ही मैं ही फ़क़त नादान हूँ

 

बस घर मेरा ताउम्र ही इस जिस्म पर तारी रहा

दीवार दर मैं था कभी, अब तो फ़क़त दालान हूँ  

 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 25, 2015 at 12:22pm

बहुत खूब 

दो पंछियों को पेड़ पर बैठे हुए देखा मगर

हँसते नहीं रोते नहीं ये देखकर हैरान हूँ

बधाई 

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on March 25, 2015 at 11:44am
बहुत खूब आदरणीय खुबसूरत असआर हुये हैं मक्ता तो माशाल्लाह,बिलकुल सचाई से रूबरू कराती है।
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 25, 2015 at 11:21am

बहुत ख़ूब शेर हुए है आदरणीय ...सादर 

दो पंछियों को पेड़ पर बैठे हुए देखा मगर
हँसते नहीं रोते नहीं ये देखकर हैरान हूँ

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