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चांदनी रात है //// हिन्दी गजल (एक प्रयास)

   (212 212)

मुतदारिक मुरब्बा सालिम

चांदनी रात है

वाह क्या बात है I

रात का तम गया

अब धवल प्रात है I

मौन वंशी लिए

वह खड़ा तात है I

पुष्प के बाण से

काम का घात है I

राग-अनुराग की

दिव्य बरसात है I

कामना है मधुर

भाव अवदात है I

नन्द का लाडला

नेह  निष्णात  है I

आपगा तीर पर

राधिका स्नात है I

नेह ‘गोपाल’ का

सर्व विख्यात है I

(मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by MAHIMA SHREE on April 1, 2015 at 8:59pm

बहुत ही खूबसूरत है ... आपकी ग़ज़ल... हार्दिक बधाई स्वीकार करें ..आ. गोपाल नारायण जी, सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 12:58pm

आ० मठपाल जी

बहुत बहुत  शुक्रिया. सादर  .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 12:57pm

प्रिय कृष्णा मिश्र जी

आपका शत-शत आभार . स्नेह .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 12:56pm

आ० वीरेन्द्र वीर मेहता जी

आपका सादर आभार .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 12:55pm

आ० नादिर खान जी

आपकी मोहब्बत को सलाम. सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 12:54pm

आ० नादिर खान जी

आपकी मोहब्बत को सलाम. सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 12:54pm

आ० नादिर खान जी

आपकी मोहब्बत को सलाम. सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 12:52pm

आ० शिज्जू भाई

मैं तो अभी अभी गजल की  A B C D सीख रहा हूँ .पर आप सरीखे विद्वानों का जो प्यार मिल रहा है वह मेरे लिए अद्भुत है . सादर .  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 12:49pm

आ० लक्ष्मण धामी जी

मुझे सिद्ध गजलकारो से स्नेह मिल रहा है यह सुखद है . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 12:49pm

आ० लक्ष्मण धामी जी

मुझे सिद्ध गजलकारो से स्नेह मिल रहा है यह सुखद है . सादर .

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