ग़ज़ल ( शुरुआते मुहब्बत हो गयी )
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(फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन- फाइलुन )
यक बयक मुझ पर सितमगर की इनायत हो गयी ।
ऐसा लगता है शुरुआते मुहब्बत हो गयी ।
की वफ़ा गैरों से अहदे इश्क़ अपनों से किया
जानेमन यह तो अमानत में खयानत हो गयी ।
यह नतीजा तो अज़ीज़ों पर यक़ी करने का है
यूँ नहीं पैदा सनम के दिल में नफरत हो गयी ।
दिल की अब कीमत कहाँ है हुस्न के बाजार में
ऐसा लगता है मुहब्बत में तिजारत हो गयी ।
फूल क्या हैं खार भी तेरे मुखालिफ हो गए
बागबाँ लगता है गुलशन में बगावत हो गयी ।
वह तसव्वुर में मेरे रहते हैं हर दम दोस्तों
कौन कहता है मेरी दिलबर से फुरक़त हो गयी ।
वह अता करने ही वाले हैं वफाओं का सिला
मुझको यह तस्दीक़ सुनते सुनते मुद्दत हो गयी ।
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
आ. तस्दीक अहमद खान साहब अचछी ग़जल हुई है बहुत बहुत बधाई आपको
दिल की अब कीमत कहाँ है हुस्न के बाजार में
ऐसा लगता है मुहब्बत में तिजारत हो गयी ।
बहुत सुन्दर कहा है ! उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई आपको तस्दीक अहमद खान साहब
मोहतरम जनाब श्याम नारायण साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी --
मोहतरम जनाब सुशील सरना साहिब , ग़ज़ल में गहराई से आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी --
बहुत बहुत बधाई आपको इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए सादर । |
दिल की अब कीमत कहाँ है हुस्न के बाजार में
ऐसा लगता है मुहब्बत में तिजारत हो गयी ।
बहुत खूब आदरणीय तस्दीक साहिब .... आपके अशआर बहते झरने की ठंडक का सुकून देते हैं .... अल्फ़ाज़ों में वो कशिश है कि सबा भी एक बार तो रुक कर सलाम करे ... बहरहाल इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर।
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