For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बियाबान-सी रात, मद्धम है चाँदनी
एक अधूरे रिश्ते के आकुलित अनुभव
बिखरे-बिखरे-से... कोने-कोने में
बेचैन इस दर्द भरे अन्धेरे में
चेहरे पर भय की रेखाएँ

माना कि बीच हमारे अब कोई दीवार
बहुत ऊँची बहुत ऊँची
ढरते-भुरते विश्वास के आईने पर
घावों की छायाओं के धब्बेे
भी गहरे अब बहुत गहरे

फिर भी कुछ जीवित है

समय की टूटी सीढ़ी चढते
क्षण-भर को भी भाव-विभोर हो
आ सको तो आओ
पाओ मुझमें कुछ जो अनन्तों से अनन्तों तक
तुम्हारे लिए अभी भी बदला नहीं

सुन लो यदि तुम यह गहरी घायल पुकार
परम्पराओं को तोड़ तुम आओ, तुम आओ
मेरे अंतर की सांकल खटखटाओ
पीड़ाएँ, दुख की कथाएँ,मैं सब कह दूँ तुमसे
मन करता है, उचटते मन को हलका कर लूँ

निज चेतस पीड़ा की वाणी सुनकर 
किसी खोये को खोजती यदि आओ तुम
आस्था की परीक्षा लेते मेरे अनुभवों को
कोमल स्पर्ष से सहलाकर
बंधी पड़ी उलझीे गाँठों की गिरह सुलझाओ तुम

ऐसे में संभवत: पहचानों तुम 
मेरे संवेदन सत्यों को
भोले विश्वास की सरलता से आलोकित 
प्रज्वलित स्नेह-रत्नों को
झील के पानी-सी काँप रही चाहे कब से आस्था मेरी

है, कुछ तो है आज
दु:स्वप्न-सी इस बियाबान-रात में
लगातार चिनगियाँ बरसाते
डरे-डरे भयानक ख़यालों की आग में
याद आ रही हैं चोट करती कटाक्ष-सी धारदार बातें 

थके हुए, गिरते-पड़ते, आशंकाहत 
भयभीत ख़्यालों की सीढियाँ चढ़ते 
ऐसे में मुझको अकस्मात लग रहा है डर ...
मैं करूँ आँसूओं-सिंची मूक वेदना का इज़हार, और तुम 
उपहास-सी मुस्कान लिए कहीं उसे भी शिकायत कह दो

बहुत दुखता है मन !

             ----------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 823

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on February 7, 2017 at 5:53pm

आदरणीय भाई समर जी, मुझको इतना मान देने के लिए हृदयतल से आभार।

कविता लिखना मेरे लिए सहज रहा है, परन्तु किसी भी कविता को वांछित गंतव्य तक पहुँचाना कठिन रहा है। यह इसलिए कि भाव उमड़ते ही कविता मानो स्वयं लिख-लिख जाती है, परन्तु वह मुझको संतुष्टि नहीं देती … रह-रह कर मुझको परेशान किए रहती है, मेरे भीतर खलबली मचाए रहती है। कोई शब्द, कोई भावाभिव्यक्ति, कोई बिम्ब, कोई प्रतीक मन में खटकते रहते हैं, और मैं लगातार रचना में परिवर्तन लाता रहता हूँ, जब तक स्वयं को संतुष्टि नहीं मिलती। 

पुन: आपका आभार, आदरणीय भाई।

Comment by Samar kabeer on February 6, 2017 at 11:10pm
जनाब विजय निकोर जी आदाब,संशोधन के बाद कविता पर जो निखार आया है वो क़ाबिल-ए-दाद है,आपका क़लम हमेशा नए पन की तलाश में रहता है,और आपकी तलाश जब कविता का रूप ले लेती है तो एक शाहकार बन जाती है,मैं जिस शाइरी के लिये भटकता हूँ उसकी तस्कीन मुझे आपकी कविता पढ़ने से हासिल हो जाती है,वैसे तो बहुत से लोग कविता लिखते हैं लेकिन सब के क़लम में वो जादूई शक्ति नहीं होती जो पाठक को अपने वश में कर लेती है और ये कवि का सबसे बड़ा कमाल होता है ,मुझे यह कहने में ज़रा भी हिचक महसूस नहीं होती कि आप वाक़ई क़लम के जादूगर हैं ,इस बहतरीन प्रस्तुति के लिये पुनः बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on February 6, 2017 at 5:52pm
आदरणीय विजय निकोरे जी आदाब , बेहतरीन, भावपूर्ण रचना के लिए बधाई ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 4, 2017 at 9:43pm
वाह आदरणीय विरह वेदना को बखूबी शब्दों में पिरोया है..
Comment by Samar kabeer on February 4, 2017 at 7:07pm
जनाब विजय निकोर जी आदाब,बहुत सुंदर और जज़्बाती कविता,हिज्र की काली रातों को आपके क़लम ने अच्छे शब्दों में बयान किया है,बहुत ख़ूब वाह, इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिल से ढेरों बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
11 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
11 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service