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छन्न पकैया छन्न पकैया , ऐसे मेरे नाना
रोज़ सवेरे पानी देते , औ देते थे दाना

छन्न पकैया छन्न पकैया , खुश होते थे नाना
उड़ते हुए परिंदे आते , सब चुगने थे दाना

छन्न पकैया छन्न पकैया ,था उनका ये कहना
आपनी तरह परिंदों का भी, खयाल रखना बहना

छन्न पाकैया छन्न पकैया,सबको ये समझाना
पशु पक्षी पेडों पौधों से, प्यार सदा जतलाना

छन्न पकैया छन्न पकैया , जीना चाहें मरना
नाना सदा यही कहते थे ,प्रेम सभी से करना ।।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Mohammed Arif on May 14, 2017 at 7:47pm
जी हाँ ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 13, 2017 at 10:45pm
बह्र-ए-कैद माने ??
Comment by Mohammed Arif on May 13, 2017 at 9:39am
आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब, आपने नाना जी के प्रति अच्छी भिवना सार छंद के माध्यम से व्यक्त की । तीसरे सार छंद में आपने "कहना" के बाद "रखना" काफिआ लिया है जो कि ग़लत है । ठीक उसी प्रकार आख़िरी छंद में समान काफिआ "कहना"और फिर "कहना"लिया है जो अरुज़ की निगाह से बह्र -ए -क़ैद कहलाता है । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे । बधाई स्वीकार करें ।

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