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खो गये है शब्द (कविता)

जाने कहाँ खो गये
खो गये हैं शब्द

जिनको पढ़कर कभी
हुआ करती थी सुबह

प्रथम किरणों के संग
ओस की बूंदों के भीतर

खो गये है वे शब्द
जो सूर्योदय से सूर्यास्त तक

कर देते थे जिवंत
ख़्वाब सजाया करते थे

खो गये हैं शब्द
जाने कहाँ किस ओर गये ।


मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 440

Comment

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Comment by Samar kabeer on May 8, 2017 at 3:36pm
मोहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा आदाब,बहुत सुंदर कविता लिखी आपने इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by narendrasinh chauhan on May 8, 2017 at 12:15pm

सुन्दर 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 7, 2017 at 1:28pm
Dhanyawad aadarniya Satvinder bhaiya.
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 7, 2017 at 9:30am
वाह्ह्ह् आदरणीय कल्पना दीदी,उत्तम अभव्यक्ति हुई है।हारदिक बधाई

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