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ग़ज़ल नूर की -दिल ने थोड़ा मलाल रक्खा है

२१२२,१२१२,२२ (११२)
.
दिल ने थोड़ा मलाल रक्खा है
तेरी यादों को पाल रक्खा है.
.
रोज़ मरता हूँ..और मरता हूँ 
फिर भी ख़ुद को सँभाल रक्खा है. 
.
यूँ तो अंजाम जानता हूँ मगर
एक सिक्का उछाल रक्खा है.
.
मैं तेरी शोख़ियाँ पकड़ लूँगा
मैंने आँखों में जाल रक्खा है.
.
तेरे मिलने तलक जुदाई का
फ़ैसला मैंने टाल रक्खा है. 
.
ख़ूब पीता हूँ..छक के पीता हूँ
ख़ुद का कितना ख़याल रक्खा है.
.
और सारा कुसूर अँधेरे का
रात ने दिन पे डाल रक्खा है.
.
देख नश्तर तुम्हारे हाथों में
“नूर” ने दिल निकाल रक्खा है.   
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 8, 2018 at 9:00pm

शुक्रिया आ. विजय जी 

Comment by vijay nikore on September 6, 2017 at 1:12am

बहुत ही खूबसूरत गज़ल । हार्दिक बधाई।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 5, 2017 at 12:55pm

शुक्रिया आ. गुरप्रीत जी.. आपको वापस देखकर अच्छा लगा 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 5, 2017 at 12:55pm

शुक्रिया आ. तस्दीक़ साहब... आपका आशय नहीं समझा मैं>

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 5, 2017 at 12:54pm

शुक्रिया आ. महेंद्र जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 5, 2017 at 12:54pm

शुक्रिया आ. डॉ आशुतोष जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 5, 2017 at 12:54pm

शुक्रिया आ. गिरिराज जी 

Comment by Gurpreet Singh jammu on September 5, 2017 at 10:40am

आदरणीय नीलेश जी बहुत ही उम्दा अशआर कहे हैं आपने इस ग़ज़ल में,, बहुत बहुत मुबारकबाद 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 3, 2017 at 9:50pm
जनाब नीलेश साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।शेर 7 के उला मिसरे की बह्र देख लीजियेगा
Comment by Mahendra Kumar on September 3, 2017 at 1:34pm

वाह! हर शेर लाजवाब है. इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आ. निलेश सर. सादर.

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