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तरही ग़ज़ल - " पहले ये बतला दो उस ने छुप कर तीर चलाए तो '‘ ( गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22 22  22 2

वो जितना गिरता है उतना ही कोई गिर जाये तो

उसकी ही भाषा में उसको सच कोई समझाये तो

 

सूरज से कहना, मत निकले या बदली में छिप जाये

जुगनू जल के अर्थ उजाले का सबको समझाये तो

 

मैं मानूँगा ईद, दीवाली, और मना लूँ होली भी   

ग़लती करके यार मेरा इक दिन ख़ुद पे शरमाये तो

 

तेरी ख़ातिर ख़ामोशी की मैं तो क़समें खा लूँ, पर  

कोई सियासी ओछी बातों से मुझको उकसाये तो

 

कहा तुम्हारा मैनें माना, जंग नहीं है हल, लेकिन

"पहले ये बतला दो उस ने छुप कर तीर चलाए तो

 

ॐ शाँति का मंत्र पाठ कर हमनें तो मन साध लिया

पाकी सेना, साथ मुज़ाहिद, सीमा पर आ जाये तो

 

सूरज तो निकलेगा तय है साथ लिये किरणें, कल भी

लेकिन आज़ादी की चाहत बदली बन छा जाये तो 
***********************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on November 1, 2017 at 2:23pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,तरही ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

'सूरज से कहना,मत निकले या बदली में छिप जाए'
इस मिसरे में 'या'शब्द भर्ती का है,देखियेगा ।
Comment by Ajay Tiwari on October 31, 2017 at 1:11pm

आदरणीय गिरिराज जी,

अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक शुभकामनाएं.

आपकी ग़ज़ल बहरे मीर के हिसाब से ठीक है. लेकिन तरही में दी गई बहर बहरे मीर नहीं है. बहरे मीर मुतकारिब का एक आहंग है तरही में दी गई बहर मुतदारिक का. तरही में भी इसकी चर्चा हुई थी. नज्मुलगनी साहब के शब्द उधार लेते हुए कहूं तो ये दोनों आहंग हमशक्ल तो हैं मगर जुड़वां नहीं. नज्मुलगनी साहब की किताब बहरुल फ़साहत में इसका विवरण उपलब्ध है(पृष्ठ 303 - 305). किताब उर्दू काउन्सिल की बेबसाइट से डाउनलोड की जा सकती है:

http://urducouncil.nic.in/ebookNew/Bahr-ul-fasahat-Vol-1.

तरही में दी गई बह्र के हिसाब से ये मिसरे बहर में नहीं है :

 'मैं मानूँगा ईद, दीवाली, और मना लूँ होली भी' 

'कहा तुम्हारा मैनें माना, जंग नहीं है हल, लेकिन'

'ॐ शाँति का मंत्र पाठ कर हमनें तो मन साध लिया'

सादर

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 31, 2017 at 11:37am

सूरज तो निकलेगा तय है साथ लिये किरणें, कल भी

लेकिन आज़ादी की चाहत बदली बन छा जाये तो  -- आदरणीय गिरिराज भाई, ये पंक्तियाँ लाजवाब है | पूरी ग़ज़ल अच्छी हुई है | मुबारकबाद स्वीकार करें

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 30, 2017 at 8:52pm
सूरज से कहना, मत निकले या बदली में छिप जाये
जुगनू जल के अर्थ उजाले का सबको समझाये तो...क्या कहने आदरणीय..बेहतरीन ग़ज़ल
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 30, 2017 at 7:19pm
आदरणीय गिरीराज भाईसाब बहुत बढ़िया रचना है गिरह का शेर भी बढ़िया है सादर बधाई। सादर

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