खुरच शीत को फागुन आया
फूले सहजन फूल
छोड़ मसानी चादर सूरज
चहका हो अनुकूल
गट्ठर बांधे हरियाली ने
सेंके कितने नैन
संतूरी संदेश समध का
सुन समधिन बेचैन
कुंभ-मीन में रहें सदाशय
तेज पुंज व्योमेश
मस्त मगन हो खेलें होरी
भोला मन रामेश
हर डाली पर कूक रही है
रमण-चमन की बात
पंख चुराए चुपके-चुपके
भागी सीली रात
बौराई है अमिया फिर से
मौका पा माकूल
खा *चासी की ठोकर पतझड़
फांक रही है धूल
चासी : कृषक
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
सुन्दर सम्यक छंद बने हैं, वाह-वाह हे तात !
मनस-आवरण फागुन-चैता, पुलकें संझा-प्रात
शिल्प कहे चत्वार चरण पर, यह प्रेषण अनुमन्य
देह-भाव, मन-भाव सुखद है, पैनी दृष्टि धन्य !!
बधाई-बधाई-बधाई..
शुभ-शुभ
वाह वाह वाह आदरणीय बड़ा ही मन भावन लगा ये छंद .....................सादर बधाई हो
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