रूठे घर में मानमनौव्वल
के दीपों को पलने दो
बहुत हो चुकी
टोका-टोकी
लस्टम-पस्टम
जीवन झांकी
बंद गली को
चौराहों से
गलबहियां दे
चलने दो
कोरी रातों में कलियों को
पल-दो-पल तो खिलने दो
अंधेरे में
डूबे घर भी
हमें देख
सकुचाते हैं
कल तक लगते
थे जो अपने
अब बरबस
डर जाते हैं
जंजीरों में बंधे बहुत अब
पंख जरा तो मलने दो
आओ हम तुम
चैती गाएं
चौसर खेलें
कुछ भसियाएं
बहुत हो चुका
सूखा सावन
फागुन को
कुछ जलने दो
प्रभु-प्रिया हैं पास खड़े अब
मंदिर पट तो खुलने दो
चलो करें
कुछ सैर सपाटा
छोड़ शहर का
ये सन्नाटा
चूल्हे-चौके
थके-थके से
उन्हें बुतों में
ढलने दो
पानी-पूरी सी रातों में
कुछ तारों को गलने दो
(पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
सादर आभार आदरणीय
आदरणीय राजेश झाजी, आपका कल्पनालोक अत्यंत विस्तृत है. जिसमें भावनाएँ हैं, उनके लिये शब्द हैं, उन शब्दों के अपने अर्थ हैं. सारा कुछ प्रवहमान है, गेय है. यह अवश्य है कि गेयता एक श्रेणीबद्ध आयोजन है जिसे आपका कवि-हृदय अक्सर सरसरी आखों से देखता हुआ फलांगता आगे निकल जाता है. उत्सवधर्मी रचनाएँ शायद ऐसे ही जीती हैं. ..
आओ हम तुम
चैती गाएं
चौसर खेलें
कुछ भसियाएं
बहुत हो चुका
सूखा सावन
फागुन को
कुछ जलने दो
बुझियउ त, हमर मोनक विस्तारम ई पंक्तिटा मुदा पइठ गेल. प्रवाहक उत्साह एनाही बनल रहबाक चाही.. . आगा फेर आगू..
धन्य-धन्य
आप सभी सुधी जनों का हार्दिक आभार, आपके स्नेह की धारा में हम हमेशा ही भंसियाते रहें यही कामना है, सादर
भसियाना देशज शब्द ही है जिसके दो अर्थ हैं 1. विसर्जन के और 2. धारा के साथ बिना प्रयास के बहते जाना, यहां धारा के साथ स्वच्छंद रूप से बहते जाने के लिए इसे रखा है ।
बहुत सुंदर रचना आदरणीय राजेश जी .....................बहुत सुंदर तरीके से देशज शब्दों को गूथा है आपने
बेहतरीन अंदाज भाई वाह
बहुत बहुत बधाई आपको
कमाल की कविता ! प्रगतिशीलता के इस दौर में जरूरत है ऐसे ही प्रयास की जो संभाल सके लड़खड़ाते जीवन को ! बहुत अच्छी रचना ! कमाल की कल्पनाशीलता , शब्द संयोजन !
//भसियाएं// शायद मैथिलि भाषा का शब्द है ! जो "सठिया जाने" के बाद कि स्थिति है संभवतः ! स्मृति लोप का प्रारंभिक चरण ! बूढ़े जब बच्चे जैसे होने लगते हैं !
चलो करें
कुछ सैर सपाटा
छोड़ शहर का
ये सन्नाटा
चूल्हे-चौके
थके-थके से
उन्हें बुतों में
ढलने दो
पानी-पूरी सी रातों में
कुछ तारों को गलने दो.......वाह! कमाल की कल्पनाशीलता.
आदरणीय राजेश झा जी सादर, इतनी सुन्दर भावपूर्ण रचना पर तहे दिल से बधाई स्वीकारें.
आदरणीय राजेश कुमार झा जी!
सुन्दर कविता ... देशज शब्दों के प्रयोग के साथ। आपने लिखा "कुछ भसियाएं" इसका आशय नही समझ आया। क्या आप बतियाए लिखना चाहते थे?
शुभकामनायें
सादर वेदिका
बहुत ही प्रभावी! देशज शब्दों का बहुत ही सुन्दर प्रयोग!
आदरणीय राजेश जी:
कविता के कोमल भाव छू गए।
बधाई।
विजय निकोर
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