बनिक भए
रंगरेज मेरे
बिछुआ, पायल
बेहाल सखी
फन काढ़
समीरन लाल चले
अंतर धधके सौ ज्वालमुखी
गठ जोड़ नयन
स्वादे आहट
कनखी जी का
जंजाल सखी
इत राग महावर
झाईं पड़े
उत फागुन है उत्ताल सखी
मन के झूमर
चुप बैठ गए
चूते अमिया
दुरकाल सखी
भ्रू-चाप चुने
महुआ नागर
मुसकै भदवा बैताल सखी
रस रस गलती
चलती चरखी
हर आस भई
पातालमुखी
अरदास खड़े
बिंदी, अंजन
दै कंगना भी सुर-ताल सखी
(पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सौरभ जी, आप सबकुछ कहें पर सादर और निवेदन जैसे शब्दों का प्रयोग मेरे लिए ना करें, मेरा मन आहत होता है । आपने सही कहा है समयाभाव अत्यधिक है, मेरी निरंतरता में कमी इसका द्योतक है । अपनी तरफ से कोशिश करता हूं कि साध कर लिखूं पर क्या करूं कि आपका कद ही इतना ऊँचा है कि हाथ बस हवा को ही टटोलते रह जाते हैं । शायद एक दो झिड़की पड़नी जरूरी है, कभी समय मिले तो मेरी एक-दो रचना का पूरा का पूरा पोस्टमार्टम कर दें, थोड़ा कष्ट होगा पर शायद उससे काई, झांई मिट जाएगी । सादर
ऐसी अभिनव, इतनी उच्च अभिव्यक्तियों का इस तरह से आकार ग्रहण करना सालता है. लेकिन क्या कर सकता हूँ ? संभव है, आपकी ओर समयाभाव हो.
वैसे इस बार आपका यह नवगीत बहुत-बहुत सधा हुआ है. आप बधाई लें, आदरणीय राजेश झाजी.
सादर निवेदन : मेरे कहे का बुरा मत मानियेगा. रचना को पढ़ कर मन इतना प्रसन्न हुआ है कि पंक्ति-पंक्ति में जीता गया.
मन के झूमर
चुप बैठ गए
चूते अमिया
दुरकाल सखी
भ्रू-चाप चुने
महुआ नागर
मुसकै भदवा बैताल सखी
रस रस गलती
चलती चरखी
हर आस भई
पातालमुखी
अरदास खड़े
बिंदी, अंजन
दै कंगना भी सुर-ताल सखी
बहुत सुन्दर ! मन को हर्षित करते शब्द झा साब
भाई राजेश झा जी बहुत सही और अच्छा लिखा है | जब मन उल्लासित होता है और अगर उसमे भी बसंत और फाल्गुन की मस्ती
साथ हो तो फिर कंगा से भी सुर-ताल की ही सुन्दर ध्वनि सुनाई देती है | हार्दिक बधाई
वाह वाह साहब क्या जोरदार रचना हुई है
प्रवाह भरा गीत आंचलिक शब्दों से पगा ये मधुर गीत
बहुत बहुत बधाई आपको इस सुन्दर रचना हेतु
बहुत ही सुन्दर झा साहब!
अरदास खड़े
बिंदी, अंजन
दै कंगना भी सुर-ताल सखी
आदरणीय राजेश कुमार झा जी बहुत अच्छी रचना लगी,,,,,,,मेरे तरफ़ से बधाई आपको,,,,,,,भाई साहब,,,,,,,,,,,,,
आदरणीय राजेश जी बहुत सुंदर रचना " बनिक भये रंगरेज मेरे बिछुवा पायल सब ........
बहुत बढ़िया आदरणीय राजेश जी-
रस रस गलती
चलती चरखी
हर आस भई
पातालमुखी
अरदास खड़े
बिंदी, अंजन
दै कंगना भी सुर-ताल सखी
आदरणीय राजेश कुमार झा जी अच्छी रचना लगी, आंचलिक शब्दों का प्रयोग मुग्धकारी है,बधाई स्वीकार करें ।
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