काग़जी
सारी कवायद
बोल में
रेशम-तसर है
*गुंजलक में
कै़द वादों
से हकीकत
मुख्तसर है
खोखले नारे उठाए ...............
*कर्दमी
लोबान जलते
टापता
दूभर डगर है
बेरूखी
कहती हवा की
फाग कितना
बेअसर है
खोखले नारे उठाए ...............
स्तब्ध
चंपा, नागकेसर
बर्खास्त सेमल
की बहर है
बिलबिलाते
नीम, बरगद
*भवदीय भौंरा
ही निडर है
खोखले नारे उठाए ...............
*मंगला
करता बगावत
रेखता
किसकी उमर है ?
कोठरी की
गुफ्तगू से
रौशनी तो
बेखबर है
खोखले नारे उठाए ...............
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
* गुंजलक - केंचुल के अर्थ में प्रयुक्त
* कर्दमी - कालिमा भरे के अर्थ में प्रयुक्त
*भवदीय भौंरा - सत्ताधीश का बिंब
*मंगला - आम जनता का बिंब
Comment
आदरणीय लड़ीवाला जी, रक्ताले साहब,नीरज जी एवं राम शिरोमणि जी, अपनी उपस्थिति एवं बहुमूल्य प्रतिक्रिया से मान देने के लिए हार्दिक आभार प्रेषित है, सादर
*कर्दमी
लोबान जलते
टापता
दूभर डगर है
बेरूखी
कहती हवा की
फाग कितना
बेअसर है
खोखले नारे उठाए ...............बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति भरी श्री राजेश कुमार झा, हार्दिक बधाई स्वीकारे
स्तब्ध
चंपा, नागकेसर
बर्खास्त सेमल
की बहर है
बिलबिलाते
नीम, बरगद
*भवदीय भौंरा
ही निडर है.......वाह! बहुत खूब आदरणीय राजेश 'मृदु'जी.
बहुत सुन्दर रचना,
सादर
नीरज कुमार 'नीर'
*मंगला
करता बगावत
रेखता
किसकी उमर है ?
कोठरी की
गुफ्तगू से
रौशनी तो
बेखबर है
खोखले नारे उठाए ...............बहोत ही बढ़िया चित्रण किया है बड़े भाई राजेश जी ...हार्दिक बधाई
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