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छू लो तुम एकबार -- सुरमयी, छू लो तुम एकबार

कटी फसल सा

पड़ा हुआ हूं

मिटा गझिन आकार

परती धरती

धूम धनुष ले

करती तीक्ष्‍ण प्रहार

छू लो तुम एकबार -- सुरमयी, छू लो तुम एकबार

कर्म ताल में

कीच भर गए

यत्‍न सकल बेकार

मन की घिर्नी

घूम थक चुकी

पंथ मिला ना द्वार

छू लो तुम एकबार -- सुरमयी, छू लो तुम एकबार

जलद पटल

क्‍या चित्र बनाऊं

किसपर करूं सिंगार

स्‍वर्णमृग तो

राम साधते

मुझे चापते हार

छू लो तुम एकबार -- सुरमयी, छू लो तुम एकबार

किरच-किरच में

दाह नुकीले

*रामधनु निस्‍सार

दाना चुगते

पेट पूरते

पाखी करे पुकार

छू लो तुम एकबार -- सुरमयी, छू लो तुम एकबार

(सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित)

*रामधनु- इंद्रधनुष के अर्थ में प्रयुक्‍त ( बांग्‍ला में इंद्रधनुष को रामधनु कहते हैं)

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Comment by Dr.Prachi Singh on March 26, 2013 at 10:20pm

बहुत खूबसूरत नवगीत प्रस्तुत किया है आ० राजेश झा जी 

हर बंद विशेष है..

बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना पर. सादर.

Comment by coontee mukerji on March 25, 2013 at 8:46pm

राजेश झा जी , कटी फ़सल सा - कविता पढ़ी . बहुत भाव प्रधान एंव सुंदर रचना है. लेकिन मैं इसे एक विद्यार्थि की  तरह पढ़ रही हूँ ,

क्या भावों को स्पष्ट करने की कृपा करेंगे....कवीता में किसकी ओर इंगिद है. धन्यवाद

Comment by Neelima Sharma Nivia on March 25, 2013 at 6:35pm

उम्दा

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 25, 2013 at 5:10pm

आदरणीय श्री राजेश कुमारझा जी, कटी फसल सा
पड़ा हुआ हूं
मिटा गझिन आकार
परती धरती
धूम धनुष ले
करती तीक्ष्‍ण प्रहार
आपको बहुत बहुत बधाई।

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