कटी फसल सा
पड़ा हुआ हूं
मिटा गझिन आकार
परती धरती
धूम धनुष ले
करती तीक्ष्ण प्रहार
छू लो तुम एकबार -- सुरमयी, छू लो तुम एकबार
कर्म ताल में
कीच भर गए
यत्न सकल बेकार
मन की घिर्नी
घूम थक चुकी
पंथ मिला ना द्वार
छू लो तुम एकबार -- सुरमयी, छू लो तुम एकबार
जलद पटल
क्या चित्र बनाऊं
किसपर करूं सिंगार
स्वर्णमृग तो
राम साधते
मुझे चापते हार
छू लो तुम एकबार -- सुरमयी, छू लो तुम एकबार
किरच-किरच में
दाह नुकीले
*रामधनु निस्सार
दाना चुगते
पेट पूरते
पाखी करे पुकार
छू लो तुम एकबार -- सुरमयी, छू लो तुम एकबार
(सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित)
*रामधनु- इंद्रधनुष के अर्थ में प्रयुक्त ( बांग्ला में इंद्रधनुष को रामधनु कहते हैं)
Comment
बहुत खूबसूरत नवगीत प्रस्तुत किया है आ० राजेश झा जी
हर बंद विशेष है..
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना पर. सादर.
राजेश झा जी , कटी फ़सल सा - कविता पढ़ी . बहुत भाव प्रधान एंव सुंदर रचना है. लेकिन मैं इसे एक विद्यार्थि की तरह पढ़ रही हूँ ,
क्या भावों को स्पष्ट करने की कृपा करेंगे....कवीता में किसकी ओर इंगिद है. धन्यवाद
उम्दा
आदरणीय श्री राजेश कुमारझा जी, कटी फसल सा
पड़ा हुआ हूं
मिटा गझिन आकार
परती धरती
धूम धनुष ले
करती तीक्ष्ण प्रहार
आपको बहुत बहुत बधाई।
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