विधना तेरे रूप में, आया कहां निखार
बेशकीमती ब्लीच औ, लोशन मले हजार
मौनी बाबा टल्ली हैं, आफत में युवराज
घूर रहा जो ताज को, गुजराती परबाज
शहर गाल में गांव हैं, कोलतार में पैर
बेदम होकर हांफती, सुबह-शाम की सैर
ट्रैफिक की हर चीख पर, सिग्नल मारे आंख
रेल-बसों में चुप खड़े, सहमे डैने, पांख
अनशन पर कोई अड़ा, कोई हुआ मलंग
इटली वाले रंग में, किसने घोला भंग
नदी रही नाला हुई, किसपर नखरे नाज ?
सिलती सौ-सौ दामिनी, फटती जाती लाज
योग भगाता रोग जो, दवा करे क्या काम
छंद ना मापो हे कवि, होगा काम तमाम
चल री अनगढ़ लेखनी, ढूंढें दूजा छोर
तेरे धूसर पांव को, लेगा शहर खखोर
पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
उसी को पढ़ रहा हूं अरून जी, बहुत आभार
राजेश भाई लिंक मिला क्या नहीं तो यह लीजिये हम ले आये. http://openbooksonline.com/group/hindi_ki_kaksha/forum/topics/51702...
हिंदी की कक्षा समूह में कुछ आलेख हैं मात्रा गणना पर आप उन्हें देखिये
आप सभी का हार्दिक आभार,मात्रा बड़ी सताती है कोई आलेख सुझाएं निवेदन है
सार्थक और सम्यक प्रयास हुआ है, भाईराजेशजी.
अन्य सुधीजनों ने जो कुछ कहा है वह भी सार्थक है.
दोहे के विषम को गुरु गुरु से कदापि अंत न करें. न ही उसका अंत भगण से ही होता है.
नदी रही नाला हुई, किसपर नखरे नाज ?
सिलती सौ-सौ दामिनी, फटती जाती लाज.. .. इस अति उच्च कहन से समृद्ध दोहे के लिए विशेष-विशेष बधाई.. .
बहुत सुन्दर दोहे रचे हैं आदरणीय राजेश जी सादर बधाई स्वीकार करें
तत कुछ सुधार अपेक्षित हैं
मौनी बाबा टल्ली हैं.......१४ मात्राएँ प्रवाह बाधित है
किसने घोला भंग ...........घोला की जगह शायद घोली होना चाहिए था
आदरणीय राजेश कुमार झा जी, आपके दोहे सुन्दर एवं रोचक हैं। हां आदरणीय अरून शर्मा जी की बात पर गौर करें। बहुत-बहुत बधाई। सादर,
आदरणीय राजेश भाई दोहों के जरिये वर्तमान परिस्थिति पर बढ़िया व्यंग कसा है. मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.
नदी रही नाला हुई, किसपर नखरे नाज ? भाई प्रश्न चिन्ह आपने सही लगाया है यह तो मुझे समझ नहीं आया.
सिलती सौ-सौ दामिनी, फटती जाती लाज . सत्य एवं निःशब्द.
मौनी बाबा टल्ली हैं, आफत में युवराज ..मौनी बाबा टल्ली हैं मात्रा गणना पुनः कर लें.
घूर रहा जो ताज को, गुजराती परबाज
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